पायलट ने कहा कि संविधान में 73वें व 74वें संविधान संशोधन को लागू हुए 25 वर्ष पूरे हो गए हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने दूरगामी सोच के तहत् वर्ष 1993 में पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा किया था और समावेशी विकास की नींव को रखा था और पंचायतों को सशक्त करने के लिए कदम उठाए थे ताकि उक्त संस्थाएं ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सके। उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन के माध्यम से वंचित तबकों विशेषकर महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति को पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनिधित्व का अधिकार प्रदान किया गया था।
पायलट ने कहा कि अधिकारों के विकेन्द्रीकरण की इस सोच ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं की मजबूती के लिए हर सरकार को काम करना चाहिए परन्तु दुर्भाग्य है कि भाजपा सरकार पूरे देश में सत्ता का एकीकरण कर रही है और इन संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है जिससे आम जनता का विकास बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार की कोई भी योजना तब तक सफल नहीं हो सकती है जब तक कि स्थानीय निकाय व पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र तभी सशक्त रह सकता है जब निर्वाचित जनप्रतिनिधि चाहे वे मंत्री हो या सरपंच उनके अधिकारों को बरकरार रखा जाए और संस्थाओं की स्वायत्तता बरकरार रहे।
गोष्ठी को प्रोफेसर रूपसिंह बारेठ ने सम्बोधित करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की सरकार द्वारा की जारी अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण है। पूर्व सांसद अश्कअली टाक, राजीव गॉंधी पंचायती राज संगठन के प्रदेश संयोजक अमित पूनियां, सम्भाग प्रभारी जसवंत गुर्जर, जिला संयोजक मोहन डागर ने भी गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किए।