न्यायाधीश शिव कुमार सिंह व विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अरुण कुमार वर्मा की बेंच ने तेल-गैस उत्पादन के इस मामले में हाल ही यशोवर्धन शांडिल्य शर्मा के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। प्रार्थना पत्र के जरिए केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 के प्रावधानों के तहत दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को चुनौती दी गई थी। एनजीटी ने दखल से इनकार करते हुए कहा कि मामला विचार करने योग्य नहीं है।
प्रार्थी ने पर्यावरणीय मंजूरी को चुनौती दी है, जबकि इसे अपील के जरिए अन्यत्र चुनौती दी जा सकती थी। एनजीटी ने कहा कि लूनी नदी से संबंधित इस मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने परियोजना का लगातार निरीक्षण किया। दोनों संस्थाओं ने मौके पर पर्यावरणीय मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन नहीं होना पाया। साथ ही, माना कि वहां वृक्षारोपण, तेल अपशिष्ट निस्तारण, भूजल के उपयोग, हरित पट्टी विकास के लिए उचित प्रावधान भी किए गए हैं।
प्रदूषण बढ़ने की जताई आशंका
यशोवर्धन शांडिल्य शर्मा ने प्रार्थना पत्र पेश कर बताया था कि लूनी नदी के तट पर तेल उत्पादन क्षमता में विस्तार के लिए बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए। तेल कुओं से निकलने वाला अपशिष्ट भी नदी में डाला जा रहा है। ऐसे में भूजल और सतही जल दोनों के प्रदूषित होने का खतरा है। भारी मशीनरी लगने के कारण ध्वनि प्रदूषण भी होने की आशंका है। वहीं परियोजना से संबंधित प्रतिनिधियों ने वृक्षारोपण, तेल अपशिष्ट के निस्तारण, भूजल उपयोग, हरित पट्टी विकास आदि के लिए किए गए प्रयासों की विस्तृत जानकारी दी। एनजीटी के आदेश में बताया है कि यह तेल ब्लॉक देश में ऊर्जा के लिहाज से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह घरेलू कच्चे तेल की कुल मांग की लगभग 25 प्रतिशत आवश्यकता को पूरा करता है।