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प्लास्टिक प्रॉब्लम यानी ‘फ्यूचर फंगस’

locationजयपुरPublished: Mar 16, 2020 01:33:16 pm

Submitted by:

Kiran Kaur

ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में लगाई गई एक प्रदर्शनी में प्लास्टिक को ‘फ्यूचर फंगस’ बताया गया।

प्लास्टिक प्रॉब्लम यानी 'फ्यूचर फंगस'

प्लास्टिक प्रॉब्लम यानी ‘फ्यूचर फंगस’

प्लास्टिक पूरी दुनिया के लिए समस्या है लेकिन राजनेताओं के लिए राजनीति का मुद्दा भी। ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में लगाई गई एक प्रदर्शनी में प्लास्टिक को ‘फ्यूचर फंगस’ बताया गया। प्रदर्शनी में शामिल कलाकारों का कहना है कि आज के युग में प्लास्टिक एक राजनीति है, जो कि लगातार फैल रही है और वर्तमान के साथ-साथ लोगों के भविष्य को भी चिंता में डालने का काम कर रही है। प्रावीरो इंडोनेशिया के योग्याकार्टा में रहने वाले धान के किसान हैं लेकिन उन्हें भविष्य की चिंता है। स्थानीय नदियों में फैले प्लास्टिक के टुकड़े यहां पीने के पानी को दूषित बना रहे हैं। प्रावीरो को फिक्र है क्योंकि वे जानते हैं कि बिना पानी धान होने का सवाल ही नहीं। सिटारम नदी में प्लास्टिक प्रदूषण ने 60त्न से अधिक मछलियों का सफाया कर दिया है। कई आउट-ऑफ-द-वर्क फिशर्स को ‘कचरा बीनने वाले’ के रूप में काम करने के लिए मजबूर कर दिया गया है। ऑस्ट्रेलिया, अमरीका और यूनाइटेड किंगड्म सहित कई देशों से प्रतिवर्ष लाखों टन प्लास्टिक का निर्यात किया जाता है। जिससे इंडोनेशिया प्लास्टिक का गढ़ बन गया है। इंडोनेशियाई कलाकार ईको नुगरोहो, जो कि कलात्मक उत्पादन कंपनी की नवीनतम प्रदर्शनी प्लास्टिकोलॉजी में अपने काम को पेश करने के लिए पर्थ में हैं, कहते हैं कि हम इस स्थिति के बारे में वास्तव में गुस्से में हैं। इंडोनेशिया में दुनियाभर से कचरा आ रहा है। देशों के लिए इसे यहां भेजना बहुत आसान है। हम हर समय प्लास्टिक को इकट्ठा करते हैं और जलाते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि हमारी स्थिति खराब हो रही है। इस संबंध में कई तरह के सुधारों की आवश्यकता है। इंडोनेशिया के नामचीन समकालीन कलाकार नुगरोहो सेल्वेजेस अपने चित्रों के माध्यम से प्लास्टिक के दुष्परिणामों को प्रदर्शित किया है। उनके कामों में इंडोनेशिया के शहरी गरीबों पर भूराजनीतिक संकटों के प्रभाव को देखा जा सकता है जिसमें प्राइरो, धान का किसान भी शामिल है। नुगरोहो प्लास्टिक कचरे को फ्यूचरिस्टिक, एंथ्रोपोमोर्फिक रूपों में बदल देते हैं, जो वैकल्पिक रूप से अलौकिक और राक्षसी दिखते हैं। उनके कामों में इंडोनेशिया के शहरी गरीबों पर भूराजनीतिक संकटों के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है, जिसमें प्राइरो, धान का किसान भी शामिल है, जिसकी सारी निराशा मूर्तिकला के रूप में अमर हो गई है। नुगरोहो ने अपनी प्रदर्शनी को ‘फ्यूचर फंगस’ नाम दिया है। उन्होंने बताया कि यह प्रदर्शनी प्लास्टिक संकट के मोर्चे पर एक आदमी प्रावीरो को चित्रित करती है, जो अपनी आजीविका और प्राकृतिक वातावरण दोनों के समवर्ती क्षय से जूझ रहा है। चित्र में प्रावीरो के सिर पर कई सारे हैंड सेनिटाइजर, सोप डिस्पेंसर और पेंट की बाल्टियां दिखाई गई हैं, जो कि हमारे ‘थ्रोअवे कल्चर’ को दर्शाती हैं। नुगरोहो के सभी कार्यों की तरह, सामग्री को इतनी सटीकता के साथ चित्रित और इकट्ठा किया गया है कि यह बिल्कुल भी प्लास्टिक जैसा नहीं लगता।

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