१० देशों से आ रहा प्लास्टिक का कचरा
हाल ही में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत के प्राचीनतम दक्षिणी ग्रेट निकोबार द्वीप के पांच समुद्र तटों का अस्तित्व प्लास्टिक के कारण खतरें में है। करेंट साइंस के ताजा संस्करण में प्रकाशित इस सर्वे में पता चला कि है कि तटों को प्रदूषित करने वाले प्लास्टिक ज्यादातर पड़ोसी देशों से समुद्र के रास्ते बहकर आ रहे हैं। निकोबार द्वीप पर सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है। निकोबार द्वीप पर मलेशिया से कुल 40.5 फीसदी, इंडोनेशिया से 23.9 फीसदी और थाईलैंड से 16.3 फीसदी प्लास्टिक कचरा बहकर आ रहा है। स्टडी करने वाले बीराजा कुमार साहू और बी. बास्कर के मुताबिक चीन,वियतनाम, म्यांमार,सिंगापुर, फिलीपींस, जापान और भारत भी प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहे हैं लेकिन इनकी मात्रा कम है। भारत से तो सिर्फ 2.2 फीसदी प्लास्टिक प्रदूषण फैल रहा है। बीराजा कुमार साहू इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटेरियल टेक्नोलॉजी और बी. बास्कर अमेरिका के मिनियेसोटा स्थित मेयो क्लीनिक से जुड़े हैं। इनके अध्ययन में पता चला है कि निकोबार द्वीप पर 10 देशों से प्लास्टिक का कचरा बहकर आ रहा है।
हाल ही में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत के प्राचीनतम दक्षिणी ग्रेट निकोबार द्वीप के पांच समुद्र तटों का अस्तित्व प्लास्टिक के कारण खतरें में है। करेंट साइंस के ताजा संस्करण में प्रकाशित इस सर्वे में पता चला कि है कि तटों को प्रदूषित करने वाले प्लास्टिक ज्यादातर पड़ोसी देशों से समुद्र के रास्ते बहकर आ रहे हैं। निकोबार द्वीप पर सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है। निकोबार द्वीप पर मलेशिया से कुल 40.5 फीसदी, इंडोनेशिया से 23.9 फीसदी और थाईलैंड से 16.3 फीसदी प्लास्टिक कचरा बहकर आ रहा है। स्टडी करने वाले बीराजा कुमार साहू और बी. बास्कर के मुताबिक चीन,वियतनाम, म्यांमार,सिंगापुर, फिलीपींस, जापान और भारत भी प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहे हैं लेकिन इनकी मात्रा कम है। भारत से तो सिर्फ 2.2 फीसदी प्लास्टिक प्रदूषण फैल रहा है। बीराजा कुमार साहू इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटेरियल टेक्नोलॉजी और बी. बास्कर अमेरिका के मिनियेसोटा स्थित मेयो क्लीनिक से जुड़े हैं। इनके अध्ययन में पता चला है कि निकोबार द्वीप पर 10 देशों से प्लास्टिक का कचरा बहकर आ रहा है।
इन तटों पर प्लास्टिक की बोतलें पाई गई हैं
भारत सहित लगभग 10 देश मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, फिलीपींस, वियतनाम, भारत, म्यांमार, चीन और जापान द्वीप पर प्लास्टिक कचरे के जिम्मेदार हैं
सर्वेक्षण में गैर भारतीय मूल के लगभग 60 तटों को शामिल किया गया था तथा इन पर लगभग
40. 5 फीसदी कचरा मलेशियाई मूल का है
23.9 फीसदी कचरा इंडोनेशियाई मूल का पाया गया
16.3 फीसदी कचरा थाईलैंड का है
इन तटों पर भारतीय मूल का केवल 2.2 फीसदी कचरा है
भारत सहित लगभग 10 देश मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, फिलीपींस, वियतनाम, भारत, म्यांमार, चीन और जापान द्वीप पर प्लास्टिक कचरे के जिम्मेदार हैं
सर्वेक्षण में गैर भारतीय मूल के लगभग 60 तटों को शामिल किया गया था तथा इन पर लगभग
40. 5 फीसदी कचरा मलेशियाई मूल का है
23.9 फीसदी कचरा इंडोनेशियाई मूल का पाया गया
16.3 फीसदी कचरा थाईलैंड का है
इन तटों पर भारतीय मूल का केवल 2.2 फीसदी कचरा है
क्यों निकोबार द्वीप पर आ रहा है प्लास्टिक कचरा?
आपको बता दें कि इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से निकोबार द्वीप नजदीक है। समुद्र में मलाका स्ट्रेट से होते हुए प्लास्टिक का कचरा बहकर निकोबार द्वीप चला आता है। इसका बड़ा कारण है लहरों के प्रवाह निकोबार द्वीप की तरफ होना। दूसरा कारण हैं इन देशों से चलने वाले जहाजों के पीछे छूटने वाली लहरें भी प्लास्टिक कचरे को निकोबार द्वीप की तरफ ढकेलती हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि निकोबार द्वीप के आसपास भारी मात्रा में समुद्री कचरा देखा गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सॉलिड वेस्ट का प्रबंधन, मछली पकडऩे से जुड़े व्यवसाय और जहाजों के ट्रैफिक का सही से नियंत्रण नहीं हो रहा है।
आपको बता दें कि इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से निकोबार द्वीप नजदीक है। समुद्र में मलाका स्ट्रेट से होते हुए प्लास्टिक का कचरा बहकर निकोबार द्वीप चला आता है। इसका बड़ा कारण है लहरों के प्रवाह निकोबार द्वीप की तरफ होना। दूसरा कारण हैं इन देशों से चलने वाले जहाजों के पीछे छूटने वाली लहरें भी प्लास्टिक कचरे को निकोबार द्वीप की तरफ ढकेलती हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि निकोबार द्वीप के आसपास भारी मात्रा में समुद्री कचरा देखा गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सॉलिड वेस्ट का प्रबंधन, मछली पकडऩे से जुड़े व्यवसाय और जहाजों के ट्रैफिक का सही से नियंत्रण नहीं हो रहा है।
पर्यटन भी बना कारण
भारतीय पर्यटकों की वजह से ही निकोबार द्वीप के तटों पर प्लास्टिक का कचरा फैल रहा है। यह धीरे धीरे बढ़ रहा है। इसका बड़ा कारण है द्वीप पर प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर गाइडलाइंस जारी नहीं है। साथ ही कचरा प्रबंधन, निगरानी और स्थानीय और घूमने आने वाले लोगों को जागरुक करने के लिए कर्मचारियों की कमी है।
भारतीय पर्यटकों की वजह से ही निकोबार द्वीप के तटों पर प्लास्टिक का कचरा फैल रहा है। यह धीरे धीरे बढ़ रहा है। इसका बड़ा कारण है द्वीप पर प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर गाइडलाइंस जारी नहीं है। साथ ही कचरा प्रबंधन, निगरानी और स्थानीय और घूमने आने वाले लोगों को जागरुक करने के लिए कर्मचारियों की कमी है।
जरूरी है निकोबार द्वीप समूह को संरक्षित करना ?
निकोबार द्वीप समूह 1044 वर्ग किमी में फैला है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 8069 है। सबसे प्राचीन आदिवासी समुदायों में से एक शोम्पेंस भी यही रहते हैं। इसी द्वीप पर ग्रेट निकोबार बायोस्पेयर रिजर्व भी है। इसी के अंदर गलाथिया नेशनल पार्क और कैंपबेल बे नेशनल पार्क भी है। इन द्वीपों पर उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगल, पहाड़ और तट हैं। यहां रॉबर क्रैब, केकड़े खाने वाले मकाऊ बंदर, दुर्लभ मेगापोडे पक्षी और लेदर बैक कछुआ भी पाया जाता है।
यह भी ध्यान रखना होगा कि यह प्लास्टिक समुद्र का पैदा किया हुआ नहीं है। यह हमारा पैदा किया हुआ प्लास्टिक है, जो विभिन्न जलधाराओं में बहता हुआ सागर में पहुंचा है इसलिए अगर समुद्र में प्लास्टिक कम करना हैए, तो हमें इस धरती पर उसका इस्तेमाल कम करना होगा। समुद्र का प्रदूषण दरअसल हमारी धरती के प्रदूषण का ही एक विस्तार है लेकिन यह हमारे जीवन के लिए धरती के प्रदूषण से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। सागर को स्वच्छ बनाने के लिए जरूरी है कि हम इस धरती को प्रदूषण मुक्त बनाएं। यह मामला सिर्फ उस सफाई अभियान का नहीं है, जिसमें एक जगह के कूड़े को किसी दूसरी जगह पर पहुंचा दिया जाता है, दरअसल यह मामला प्रदूषण के कारकों को खत्म करने का है। इनमें एक कारक प्लास्टिक है। जाहिर है, धरती पर प्लास्टिक जितना कम होगा, समुद्र में भी वह उतना ही कम पहुंचेगा।
निकोबार द्वीप समूह 1044 वर्ग किमी में फैला है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 8069 है। सबसे प्राचीन आदिवासी समुदायों में से एक शोम्पेंस भी यही रहते हैं। इसी द्वीप पर ग्रेट निकोबार बायोस्पेयर रिजर्व भी है। इसी के अंदर गलाथिया नेशनल पार्क और कैंपबेल बे नेशनल पार्क भी है। इन द्वीपों पर उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगल, पहाड़ और तट हैं। यहां रॉबर क्रैब, केकड़े खाने वाले मकाऊ बंदर, दुर्लभ मेगापोडे पक्षी और लेदर बैक कछुआ भी पाया जाता है।
यह भी ध्यान रखना होगा कि यह प्लास्टिक समुद्र का पैदा किया हुआ नहीं है। यह हमारा पैदा किया हुआ प्लास्टिक है, जो विभिन्न जलधाराओं में बहता हुआ सागर में पहुंचा है इसलिए अगर समुद्र में प्लास्टिक कम करना हैए, तो हमें इस धरती पर उसका इस्तेमाल कम करना होगा। समुद्र का प्रदूषण दरअसल हमारी धरती के प्रदूषण का ही एक विस्तार है लेकिन यह हमारे जीवन के लिए धरती के प्रदूषण से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। सागर को स्वच्छ बनाने के लिए जरूरी है कि हम इस धरती को प्रदूषण मुक्त बनाएं। यह मामला सिर्फ उस सफाई अभियान का नहीं है, जिसमें एक जगह के कूड़े को किसी दूसरी जगह पर पहुंचा दिया जाता है, दरअसल यह मामला प्रदूषण के कारकों को खत्म करने का है। इनमें एक कारक प्लास्टिक है। जाहिर है, धरती पर प्लास्टिक जितना कम होगा, समुद्र में भी वह उतना ही कम पहुंचेगा।