डॉ कोठारी ने कहा कि मीडिया आज एक महत्वपूर्ण इकाई बन गया है। लेकिन जनता और सरकार के बीच सेतू बनने के स्थान पर अब खुद चौथा पाया बनने के लिए तैयार हो गया है। इसका अर्थ ये हो गया है कि अब मीडिया जनता और सरकार के बीच ना रहकर सरकार के साथ रहना चाहता है।
उन्होंने कहा कि वे विश्वास दिलाते हैं कि राजस्थान पत्रिका कभी भी चौथा पाया नहीं बनेगा। पत्रिका हमेशा लोकतंत्र की सेवा करेगा और उसके सभी सिद्धांतों के प्रति तत्पर रहेगा। उन्होंने मतदान का उदाहरण देते हुए कहा कि पत्रिका ने विभिन्न अभियानों के माध्यम से मतदान प्रतिशत बढाने का काम किया है जो हमारे भविष्य की स्वर्णिम रेखा है।
‘जिस उद्देश्य से नींव रखी, वो आज भी अक्षुण’ दो ग्रंथों ‘संवाद उपनिषद्’ और ‘अक्षर यात्रा’ के विमोचन कार्यक्रम के अवसर पर कोठारी ने कहा कि पत्रिका के संस्थापक कर्पूर चंद कुलिश ने जिन उद्देश्यों के साथ वर्ष 1956 में ‘पत्रिका’ की नींव रखी थी, आज भी उन्हीं उद्देश्यों को अक्षुण रखा हुआ है। चाहे निर्भीकता की बात हो या निष्पक्षता की और चाहे सामाजिक सरोकारों की।
‘विश्वास के बीच कोई स्पर्धा नहीं’ डॉ कोठारी ने कहा कि पत्रिका हमेशा ही अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करता रहा है, तो वहीं समाज के सरोकारों के लिए पत्रिका का इतिहास गवाह है। लेकिन उससे भी आगे राजस्थान पत्रिका के पाठकों के बीच बना विश्वास है जिसके सामने आज भी कोई स्पर्धा में नहीं है।
‘वैदिक विज्ञान को विज्ञान शैली में प्रस्तुत करने का उठाया बीड़ा’ डॉ कोठारी ने कहा कि दो उपनिषद ‘संवाद उपनिषद’ और ‘अक्षर यात्रा’ भारतीय वांग्मय की श्रृंखला में जुडा नया अध्याय है। यह 224 वां उपनिषद विश्व को उपलब्ध होने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पत्रिका के संस्थापक स्वर्गीय कर्पूर चंद कुलिश ने वैदिक विज्ञान को आज की विज्ञान शैली में प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया था। पत्रिका की वेद पीठ भी इसी ज्ञान को शास्त्रों से बाहर निकालकर वैज्ञानिकों के समक्ष रखने की दिशा में प्रयासरत है।
उन्होंने कहा कि आज पुरातन ज्ञान को नए स्वरुप में आज की पीढी के सामने रखने की महत्ती आवश्यकता है। इसके बिना नई पीढी को मुक्त आकाश नहीं मिल सकेगा। ‘भारत ने शब्द को ब्रह्म बना दिया’
डॉ कोठारी ने कहा कि विश्व में आज विज्ञान और तकनीक की चकाचौंध विद्युत् के प्रकाश पर टिकी है। वहीं दूसरा प्रकाश है शब्द जो भीतर की अभिव्यक्ति को प्रकट करता है। भारत ने शब्द पर काम करते हुए उसे ब्रह्म बना दिया। आज शब्द को ब्रह्म की तरह ही पूजते हैं।
उन्होंने कहा कि ‘अक्षर यात्रा’ की भूमिका में ब्रह्म का शास्त्रीय विवेचन है। वर्णमाला का संपूर्ण परिचय स्वर, व्यंजन, अक्षर हर एक का स्पष्ट विवरण एवं विस्तार है। इसमें 33 अध्याय हैं। ‘समुदाय के लिए नए रुप में स्थापित होगा वेद-विज्ञान’
वहीं ‘संवाद उपनिषद’ के बारे में बताते हुए कोठारी ने कहा कि इस ग्रन्थ में शब्द युक्त संवाद के साथ-साथ शब्द विहीन संवाद जैसे मां-गर्भस्त शिशु के बीच संवाद, दो तरफ़ा संवाद, एक तरफ़ा संवाद सहित विभिन्न तरह के संवादों को इसमें समाहित किया गया है। वेद-विज्ञान का ये नया चिंतन इस समुदाय में नए रूप में स्थापित होगा।
उन्होंने कहा कि देश के मूर्धन्य संस्कृत विशेषज्ञ डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री के अनुसार केवल 10 उपनिषद थे। बाद में बढ़ते— बढ़ते 223 हो गए। मध्यकाल में एक और उपनिषद जुड़ा। आज उसी परंपरा में संवाद उपनिषद विश्व पटल पर प्रस्तुत करने के लिए आपके समक्ष प्रस्तुत है।
‘समय के साथ सभ्यता बदलती है, संस्कृति नहीं’ डॉ कोठारी ने कहा कि परंपरा के आनुसार कई ऐतिहासिक शहरों में विभिन्न मार्गों पर स्वागत द्वार बने हैं जो वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि समय के साथ सभ्यता बदलती है, लेकिन संस्कृति नहीं बदलती। पत्रिका गेट का मूल मंत्र भी यही है।
‘पिछले चर्चा से लिए निर्णय का आभार’ प्रधानमंत्री का आभार जताते हुए उन्होंने कहा कि पिछली चर्चा में जो मुद्दे आए थे, उनमें से कई मुद्दों पर सरकार निर्णय ले चुकी है। 27 कीटनाशक पर प्रतिबंध लगाया है जिसका आभार है।
‘कम्यूटर पर शिक्षा में हो उम्र बाध्यता’ वहीं कोठारी ने कोरोना काल के दौरान बदली शिक्षण व्यवस्था पर चिंता ज़ाहिर की। उन्होंने कहा कि आज एक ओर घर से काम करने की परंपरा शुरू हुई तो वहीं दूसरी ओर स्कूल और कॉलेज घरों में घुस गए। छोटे- छोटे बच्चों को इंटरनेट के ऊपर पढ़ाई करनी पड़ रही है। कोठारी ने प्रधानमंत्री से कंप्यूटर पर शिक्षा ग्रहण करने की कम से कम उम्र की बाध्यता रखने का आग्रह किया। उन्होंने उम्र के अनुरूप उनकी ग्रेडिंग किये जाने और बच्चों के परिजनों को राहत देने की भी बात कही।
‘आस्थावान समाज का जोडें संकल्प’ उन्होंने कहा कि हाल ही में आई नई शिक्षा नीति सराहनीय है। कोठारी ने इस दिशा में आस्थावान समाज पैदा करने का एक संकल्प जोड़ने की पहल करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इसके बिना हम राष्ट्र चिंतन को विकसित नहीं कर पाएंगे।