पहले भी लग चुका है हाईकोर्ट से झटका परिवहन विभाग ने 2016में लाइसेंस नवीनीकरण में देरी पर जुर्माना लगाया था, जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने अवैध बताकर निरस्त कर दिया था। विधि विभाग से बैरंग लौटा प्रस्ताव परिवहन विभाग ने प्रदूषण जांच समय पर नहीं करवाने वालों से पेनल्टी वसूलने के लिए नियमों में संशोधन का प्रस्ताव चलाया था, जिसे विधिक परीक्षण के बाद विधि विभाग ने यह कहते हुए लौटा दिया था कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 111 में राज्य को एेसा नियम बनाने का अधिकार नहीं है। इसके बाद परिवहन विभाग ने अपने स्तर पर योजना को लागू कर दिया। परिवहन विभाग वसूली के लिए एम सी मेहता के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के जिस आदेश का हवाला दे रहा है, उसकी पड़ताल में सामने आया कि आदेश में प्रदूषण जांच केन्द्रों की गड़बड़ी रोकने पर जोर दिया है। साथ ही वाहन मालिकों पर प्रदूषण जांच के लिए प्रेरित करने की मंशा जाहिर की गई है। इसके तहत कहा है कि वाहन मालिक प्रदूषण सम्बन्धी मानकों के पालन नहीं करने का दोषी पाया जाए तो सुधार के लिए उसे सात दिन का समय दिया जाए, फिर भी पालन नहीं हो तो कार्रवाई की जाए। विधि जानकारों का कहना है कि पहले लोगों को कानून व नियम समझाए जाएं, मनमानी वसूली अवैध है।
क्या कहता है कानून कानून की धारा 111 में राज्य सरकार को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है, जिसके तहत वह या तो उस विषय पर नियम बना सकता है, जिस पर केन्द्र सरकार ने धारा 110 (1) के तहत प्रावधान नहीं किया है। केन्द्र सरकार ने वायु प्रदूषण को लेकर मानक तय कर रखे हैं। एेसे में राज्य सरकार के पास वाहनों की नियमित जांच के लिए प्राधिकारी अधिकृत करने और जांच के लिए फीस तय करने का ही अधिकार है।
क्या है अधिनियम की धारा 190(2) असुरक्षित स्थिति में वाहन का प्रयोग करने पर ध्वनि व वायु प्रदूषण रोकने के लिए पहली बार अपराध पर एक हजार रुपए तक जुर्माना लिया जा सकता है। लगातार दूसरी बार अपराध किया जाए, तो जुर्माना दो हजार रुपए तक हो सकता है। राज्य के परिवहन विभाग ने इसे अलग-अलग श्रेणियों में बांटकर 50 सीसी इंजन वाले दुपहिया वाहनों के लिए जुर्माना 100 रुपए और इससे ऊपर वालों के लिए 250 रुपए तय कर रखा है। तीन पहिया वाहनों के लिए 500 रुपए तथा दुपहिया-तिपहिया को छोड़कर अन्य वाहनों के लिए 1000 रुपए जुर्माना तय है।
बिना प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र वाहन चलाने पर पेनल्टी ली जा सकती है। विधि विभाग ने इस प्रावधान के लिए अनुमति देने से इनकार किया, इसकी जानकारी नहीं है। रवीन्द्र जोशी, जिला परिवहन अधिकारी (मुख्यालय)
‘कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए। नियमों के तहत जांच की जाए और लोगों को जानकारी दी जाए। मनमानी नहीं की जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी मनमाने तरीके से लागू नहीं किया जाए। शिवकुमार शर्मा, पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान हाईकोर्ट