ऐसा ही कुछ हुआ था भाजपा नेता भैरों सिंह शेखावत के साथ, जिन्हें प्यार से राजस्थान की जनता बाबो सा कहा करती थी. वह काफी लोकप्रिय नेता थे और अपनी पार्टी के अलावा भी उनके अन्य नेताओं से काफी अच्छे सम्बन्ध थे.
शेखावत व्यावहारिक और दिलेर थे और कहा जाता था कि राजस्थान में एक ही सिंह है: भैरों सिंह. वो 1952 से ही लगातार विधायक बन रहे थे और उन्हें केवल 1972 में मात मिली. ठीक एक साल बाद ही वो मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सांसद चुन लिए गए.
इमरजेंसी के ठीक बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त लहर थी और पार्टी को बहुमत मिला. 1977 में मिली विजय के बाद उन्हें वापस राजस्थान बुलाकर कमान सौंप दी गई. भैरों सिंह शेखावत 22 जून 1977 को पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने.
हालांकि उनकी सरकार केवल 3 साल बाद बर्खास्त कर दी गई. इसके बाद भाजपा को सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने में 13 साल लग गए. लेकिन यह रास्ता भी कठिन गुज़रा. शेखावत को भी 1993 के विधानसभा में दो जगहों से चुनाव लड़ना पड़ा. उन्होंने बाली और श्रीगंगानगर, दोनों ही सीटों से पर्चा भरा था. श्रीगंगानगर में शेखावत को करारी हार का सामना करना पड़ा और वो तीसरे स्थान पर रहे. यहाँ से कांग्रेस के राधेश्याम हरदयाल ने जीत दर्ज़ की.
वहीँ बाली विधानसभा ने शेखावत को जीत दिलाई. यहाँ उन्होंने करीब साढ़े दस हज़ार वोटों से जीत दर्ज़ की. भाजपा बहुमत से बस 5 सीट दूर रही और उसे 96 सीटें मिलीं. कांग्रेस के भाजपा के वोट प्रतिशत का अंतर आधी फीसदी से भी कम था लेकिन कांग्रेस को मात्र 76 सीटें ही मिलीं, मतलब भाजपा से 20 सीटें कम. जनता दल, माकपा और निर्दलीयों ने 28 सीटों जीत दर्ज़ की और जयपुर के सत्ता की चाबी उनके हाथों में थी.
भाजपा की सरकार बनाने में शेखावत की भूमिका चाणक्य सरीखी रही. निर्दलीय विधायक बने 10 पूर्व कांग्रेसी खुलकर भाजपा के पक्ष में आ गए. जनता दल से 6 विधायक बने थे. शेखावत ने जनता दल के 3 विधायक भी तोड़ लिए और पहली बार उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।