कोई डुप्लेक्स विला में
कोई अपार्टमेंट हाउस में
कोई किराए पर खोजता रहा
कोई झाुग्गी-झाोपड़ी में
ढूंढ़ता रहा अपना आशियाना! सब बस गए
अपनी मर्जी के मालिक बन गए
पर, शहर भी शहर ही ठहरा
अपनी तासीर नहीं छोड़ी
लौटा दिए बसे हुए लोग
अपने-अपने गांव को!
रोजगार की तलाश में
वे आज लौट रहे हैं अपने गाव
अपनी जमीन पर
अपने पुश्तैनी घर
अपनी बची जिंदगी को बचाने! सब बदल गए
शहर बदल गया
लोग बदल गए
जीवन के मानक बदल गए
नहीं बदला तो सिर्फ गांव
भारत देश का गांव!
भारत देश का
मैं कभी नहीं देता ‘देश निकाला’
मैं तो बसाता हूं लोगों को
‘मिनख’ बने रहने के लिए
मिनख बचे रहे तो
यह जीवन भी बचा रहेगा!
कवि मिज़ोरम केंद्रीय विश्वविद्यालय, आइजॉल के हिंदी विभाग में कार्यरत हैं