scriptकोविड का कहर | poem by Gopal Krishan | Patrika News

कोविड का कहर

locationजयपुरPublished: Jun 25, 2020 12:12:07 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

कोरोना से बदले हालात को बयां कर रही है यह कविता

कोविड का कहर

कोविड का कहर

कविता
गोपाल कृष्ण व्यास

देख कहर कोविड का
कोयल ने गाना छोड़ दिया,
झूम झूम कर नाचने वाला
मोर नाचना भूल गया,
मुर्गा सुबह जगाने वाला
बांग देना भूल गया,
नहीं देख इंसान की सूरत
तान के खूंटी सो गया,
जंगल में हिरणों ने भी
छलांग लगाना छोड़ दिया,
गुफा से अपनी शेरों ने
बाहर निकलना छोड़ दिया,
सुबह सवेरे चिडिय़ों ने भी
चह चहाना बंद किया,
भैंस बकरी और गायों के
आंसू आंखों में भर गया,
बाग और बगीचों में
फूलों ने इठलाना छोड़ दिया,
पेड़ से गिरे फलों ने भी
धरती में समाना मान लिया
नदियों और नालों ने भी
कलरव करना छोड़ दिया,
पक्षियों के झाुंड ने
गगन में उडऩा छोड़ दिया,
हाथी बंदर ओर भालू भी
चुपचाप नजारा देख रहे,
देख के दुख इंसान का
मन ही मन मेें रो रहे,
ठहरा है जीवन मानव का
विचलित यहां सब हो गए
अब गिद्ध,सियार और भेडि़ए
शरीर इंसान का नोच रहे
मानव हो या जीव जन्तु
एक दिन रज में रम जाएंगे,
तांडव उर्मी पर करने वाले
हवा में कल उड़ जाएंगे,
और काल चक्र की चक्की में
घुन की तरह घुल जाएंगे,
भगवान की इस मूरत को
अब हाथ जोडऩा छोड़ दो,
मास्क लगाकर जीना है
अब हाथ मिलाना छोड़ दो,
कवि पूर्व न्यायाधीश हैं

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो