हो कोई मुश्किल, या हो कोई उलझन,
वो मेरे साहस, का इक दर्पण…
उसका हर रूप, है यूं निराला,
प्रेम का मेरे लिए, है वो प्याला… उसकी ममता, है सागर का दरिया,
उसके आंचल में, मुझे दिखे है परियां…
वो है जादू, की एक पुडिय़ा,
मंै उसके सपनों की, नन्ही सी गुडिय़ा…
वो मेरे साहस, का इक दर्पण…
उसका हर रूप, है यूं निराला,
प्रेम का मेरे लिए, है वो प्याला… उसकी ममता, है सागर का दरिया,
उसके आंचल में, मुझे दिखे है परियां…
वो है जादू, की एक पुडिय़ा,
मंै उसके सपनों की, नन्ही सी गुडिय़ा…
घर है उससे, मेरी है वो जान,
उसके बिना मेरा, हर पल वीरान…
मेरे साथ, हमेशा रहे,
मुझको लगा ले, अपने गले…!!!
——————- बुढापा
ढल रहा है जीवन, शाम की तरह,
बोझ लगते हैं अपनों को, किसी काम की तरह…
उसके बिना मेरा, हर पल वीरान…
मेरे साथ, हमेशा रहे,
मुझको लगा ले, अपने गले…!!!
——————- बुढापा
ढल रहा है जीवन, शाम की तरह,
बोझ लगते हैं अपनों को, किसी काम की तरह…
ढलती उम्र में, मिलते हैं ताने बातों के,
आंसू नहीं, ये उम्मीद बह रही है, आंखों से… इतना दर्द भरा है मेरे अंदर, जता नहीं सकती,
जबान लडख़ड़ाती है, बता नहीं सकती… हां! चेहरे पर तो केवल झाुर्री पड़ी है,
पर जज़्बात की तो रोज, अर्थी उठ रही है…
आंसू नहीं, ये उम्मीद बह रही है, आंखों से… इतना दर्द भरा है मेरे अंदर, जता नहीं सकती,
जबान लडख़ड़ाती है, बता नहीं सकती… हां! चेहरे पर तो केवल झाुर्री पड़ी है,
पर जज़्बात की तो रोज, अर्थी उठ रही है…
बहुत लाचार खुद को महसूस किया है,
जब बुढ़ापे का मैंने ये दौर जिया है… मेरे मरने की दुआ, मेरे बच्चे करते हैं,
ये सुन कान ही नहीं, मेरे दिल के घाव भी रिसते हैं…
जब बुढ़ापे का मैंने ये दौर जिया है… मेरे मरने की दुआ, मेरे बच्चे करते हैं,
ये सुन कान ही नहीं, मेरे दिल के घाव भी रिसते हैं…
मां बाप बच्चों को पाल के बड़ा करते हैं,
बच्चे सड़क पे छोड़, कर्ज और फर्ज अदा करते हैं… अब मुझमें सहने की और ताकत नहीं,
अगर जिन्दगी ये है, तो सच जीने की चाहत नहीं…
बच्चे सड़क पे छोड़, कर्ज और फर्ज अदा करते हैं… अब मुझमें सहने की और ताकत नहीं,
अगर जिन्दगी ये है, तो सच जीने की चाहत नहीं…