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डर के आगे जीत

locationजयपुरPublished: Jul 25, 2020 12:32:35 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

कोरोना से बढ़ी दूरियां कम करने और हौसला बनाए रखने का संदेश दे रही है यह रचना।

डर के आगे जीत

डर के आगे जीत

कविता
रवि गहलोत

स्त्री
और
उसका स्त्रीत्व…
पुरुष
और उसका पुरुषत्व…
दोनों से मिलकर
बनता है “हम”
ये हम हैं
और
ये हमारा अस्तित्व।
हम तो केवल परिवार हैं,
हमें चाहिए पड़ौस,
पड़ौस में…..
हमारे ही जैसे दिखने वाले
वह तुम हो
और
वह तुम्हारा व्यक्तित्व।
हम तुमसे मिलकर
खुश हो लेते थे…
तुम हमसे मिलकर
खुश हो लेते थे…
पूरा हो लेता था
समाज का दायित्व।
तुम
जब भी आते ,
हमसे पूछ कर आते
और
हम
जब भी
तुम्हारे पास जाते
तुमसे पूछ कर जाते
फिर ………
अचानक,
एक दिन…..
हमारे – तुम्हारे बीच
बिना पूछे,
बिना बताए,
यह “कोरोना” आ गया
और
हमारी – तुम्हारी
सामाजिक दूरी बढ़ा गया ।
केवल दूरी बढ़ाता
तब भी,
हम दूर से देख – देख कर खुश हो लेते,
हम दूर से हंसी फेंकते,
तुम दूर से ही लपकते….
जब तुम हंसी फेंकते
हम इधर भी लपकते….
मगर इसने
हमें हमारेपन से,
तुम्हें तुम्हारेपन से,
डरा दिया है
अब यह डर
केवल पड़ौसी से नहीं
हमें अपनी
परछांई से भी लगने लगा है,
सुना है……..
उधर तुम भी
अपनी ही परछांई से डरते हो
लेकिन
ना हम हार मानने वाले हैं,
ना तुम हार मानने वाले हो,
क्योंकि
हमें भी पता है
तुम्हें भी पता है
डर के आगे जीत है।
कवि राजपत्रित अधिकारी हैं

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