जीवन और संघर्ष
स्त्री के जीवन संघर्ष को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करती है यह कविता

कविता
सीमाअखि चतुर्वेदी
मेरे जीवन को
दूसरा जन्म देने आया था,
जिसका नाम मैंने 'संघर्ष' रख लिया था..
इसी ने यकीन दिलवाया था
मुझे....
एक जीवन में भी
दूसरा जन्म होता है
उसने दी मेरे माथे पर
सिंदूरी रात
और,..उससे ही सीखा मैंने
होंठों पर लाली नहीं
मुस्कान सजती है
उसने बताया मुझे
खनकती चूडिय़ां
गले का मंगलसूत्र
ओर पैरों की पायल
तुम्हें आजाद नहीं करेंगे
ये बांधे रखेंगे तुम्हें
हजार बन्धनों में,
ये रोकेंगे हर पल
तुम्हारी दैहिक और
आत्मिय स्वतंत्रता को,
तुम जैसी हो
वैसी ही रहो
नैसर्गिक सौन्दय की तरह...
जो किसी गुलाब, मोगरे और
अमलताश को मिला है..!
ये सब कुछ जीवन में
मेरे संघर्ष ने कहा था,
और..फिर पत्थर
की तरह वही
गड़ गया था,
बारिश की बूंदों
और सूरज की
किरणों ने उसे
मूरत में बदल दिया है..!
मेरे गालों के गढ्ढे
अब उसे दिखाई
नहीं पड़ते,
कहता है
वर्षा की बूंदें मेरे
चेहरे पर लुढ़के
तो में ज्यादा खूबसूरत लगती हूं...
सचमुच..क्या?
हां मुझे भी
यही लगता है,
एक स्त्री अपने जीवन में
मजबूत होकर प्रेम करती है
अगर छली गई तो...
वो संघर्ष करती है,
उसका जीवन के प्रति
नजरिया बदल जाता है,
फिर वो किसी को नहीं छलती
क्योंकि....
वो जानती है जीवन में
दर्द को सहेजना,
कहती है,
मुझे चाहे तुम प्रेम मत करो,
प्रेम के बगैर भी मैं ..तुम्हारे साथ हूं..!
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