script

तपती धरती

locationजयपुरPublished: May 23, 2020 04:46:58 pm

Submitted by:

Chand Sheikh

कुदरत के साथ खिलवाड़ करने से हो रही परेशानी और बदलते युग को दर्शाती हैं ये दो कविताएं।

तपती धरती

तपती धरती

कविताएं

डॉ. शैल चन्द्रा

तपती धरती, जल रहा आसमान।
घटता जल, सब हैं हैरान।

लुप्त होती हरियाली।
नहीं दिखती प्रकृति की लाली।

नीम पीपल के छांव तले।
अब न कोई झाूला झाूले।

बाग-बगीचे में न कोई मिले।
पेड़ पौधौं को सब भूले।
शीतल न होती अब सिंदूरी सांझा।
धरती हो रही अब बांझा।

सूरज अब डराने लगा है।
मन अब घबराने लगा है।

जलती धरती की बुझााना है प्यास।
हरियाली को रखना है पास।

तो बन्द करो अब प्रकृति का दोहन।
मत करो धरती का शोषण।
पेड़ लगाओ हजार – हजार।
धरती करें यही पुकार।

सागर सरिता कल कल गाए।
पंछी मधुर गान सुनाएं।

सुमन अपना सौरभ बिखराए।
गुन गुन भौरें गुनगुनाए।
धरा सुंदरी धानी चुनर लहराए।
आसमान भी देख मुस्काए।

——————————————-
युग करवट बदल रहा है

युग करवट बदल रहा है ।
वक्त रेत सा फिसल रहा है।
रोती धरती ,आसमान जल रहा है।
कैसा डर हर मन में पल रहा है।
सब तरफ उथल-पुथल हो रहा है।
कितना निर्बल हो मानव
बस हाथ मल रहा है।
काल का कालचक्र देखो कैसा चल रहा है।
फिर भी उम्मीद आशाओं का स्वप्न पल रहा है।
जीवन को कर मुठ्ठी में,
हर मानव चल रहा है।
जीत जाएंगे यह जंग,
यह सोच हर मन बहल रहा है।
युग के साथ हर मानव बदल रहा है।
आने वाला युग कैसा होगा?
यह संशय हरेक मन में पल रहा है।
जो होगा अच्छा होगा,
आने वाला कल बदल रहा है।
होकर सावधान हर मानव चल रहा है।

रचनाकार स्कूल में प्राचार्य हैं

ट्रेंडिंग वीडियो