दरअसल गहलोत और पायलट खेलो के बीच शुरू हुए सियासी घमासान के बाद बीते 20 दिनों से राजस्थान में संवैधानिक संस्थाओं में टकराव के हालात बन रहे हैं, चाहे वह जांच एजेंसियों का मामला हो, विधानसभा स्पीकर और हाईकोर्ट के बीच का मामला हो या फिर अब सरकार और राज्यपाल के बीच का मामला हो। ऐसे हालात प्रदेश में पहले कभी देखने को नहीं मिले।
एसओजी-अन्य राज्यों की पुलिस
प्रदेश में विधायकों की खरीद-फरोख्त और सरकार गिराने की साजिशों के आरोपों पर पर राज्य के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप एसओजी में मामला दर्ज होता है, एसओजी इसकी जांच शुरू करती है और विधायकों के बयान लेने मानेसर पहुंचती है तो हरियाणा पुलिस एसओजी को होटल में प्रवेश करने से रोकती है, तब तक बागी विधायक वहां से रवाना हो जाते हैं, इसके बाद एसओजी दिल्ली पहुंचती है तो वहां दिल्ली पुलिस भी उसे बागी विधायकों तक नहीं पहुंचने देती है।
सीबीआई और राज्य का गृह विभाग
वहीं राज्य का गृह विभाग भी सीबीआई को बिना परमिशन किसी भी मामले की जांच करने से रोक रहा है, इसके लिए बाकायदा लिखित में आदेश में जारी किया जाता है, जबकि सांवराद हिंसा और सीआई विष्णु दत्त विश्नोई आत्महत्या मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
सरकार को अंदेशा है कि केंद्र सरकार कांग्रेस नेताओं और विधायकों को सीबीआई से डराकर उन पर दबाव बनाना चाहती है। सीबीआई ने सांवराद हिंसा मामले में सीएम के करीबी विधायकों में शामिल राजेंद्र गुढ़ा को आरोपी बनाया है। वहीं विधायक कृष्णा पूनियां से भी सीआई विष्णु दत्त आत्महत्या प्रकरण में पूछताछ कर चुकी है।
स्पीकर व हाईकोर्ट
वहीं व्हिप उल्लंघन मामले में बागी विधायकों को विधानसभा स्पीकर की ओर से दिए गए नोटिस को बागी विधायकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, हाईकोर्ट ने 24 जुलाई को फैसला सुनाने की बात कहते हुए स्पीकर को भी निर्देश जारी किए, जिसे विधानसभा स्पीकर ने अपने अधिकारों में हस्तक्षेप माना और बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी।
राज्यपाल व सरकार
सूत्रों की माने तो विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्यपाल से पूर्व में मुलाकात कर चुके हैं लेकिन सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल ने अभी तक भी परमिशन नहीं दी है जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सार्वजनिक रूप से विधानसभा का सत्र जल्द बुलाए जाने की मांग कर चुके हैं।