शिव पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से हर तरह के दोष, रोग खत्म हो जाते हैं,हर मनोकामना पूरी होती है। इस व्रत के महात्म्य को सबसे पहले खुद भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। बाद में यह कथा महर्षि वेदव्यासजी ने सुनाई. माह के प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस समय महादेव भोले शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार प्रदोष व्रत करने से शरीर निरोगी रहता है, उम्र बढ़ती है और यदि कोई बीमारी हो तो वह दूर होने लगती है। क्षय रोग से पीड़ित लोगों के लिए यह व्रत बहुत फलदायी होता है. डाक्टर्स से इलाज कराते हुए वे विश्वासपूर्वक यह व्रत रखकर शिव पूजा करें तो जल्द ही यह रोग दूर हो जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि सबसे पहले चंद्रमा ने यह व्रत किया था जिसके प्रभाव से चंद्रमा का क्षय रोग खत्म हो गया था। सुखी दांपत्य जीवन और संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।