scriptGuru Govind Singh Jayanti 2021 जब मुगलसेना को चीरते निकल गए मुट्ठी भर सिख, जानिए गुरू गोविंदसिंह की बहादुरी की दास्तां | Prakash Parv 2021 Guru Govind Singh Birthday Chamkaur War Story | Patrika News

Guru Govind Singh Jayanti 2021 जब मुगलसेना को चीरते निकल गए मुट्ठी भर सिख, जानिए गुरू गोविंदसिंह की बहादुरी की दास्तां

locationजयपुरPublished: Jan 19, 2021 05:22:50 pm

Submitted by:

deepak deewan

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Prakash Parv 2021 Guru Govind Singh Chamkaur War Story

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जयपुर. गुरू गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। उन्होंने ही आदिग्रंथ साहिब को गुरु की गद्दी दी थी। गुरु गोविंद सिंह ने ही खालसा पंथ की स्थापना कर सिखों को पंच ककार दिये। वे साहस और शौर्य के प्रतीक होने के साथ ही विद्वानों के भी संरक्षक थे। यही कारण है कि उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था। यूं तो सिख कौम ही वीरता के लिए विख्यात है पर गुरु गोबिंद सिंह तो मानो बहादुरी की मिसाल थे। वे जीवनभर मुगल आततायियों से भिडते रहे। गुरू गोबिन्द सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया चमकौर युद्ध तो बहादुरी की अदभुत दास्तां के रूप में इतिहास में दर्ज हो चुका है।
विश्व इतिहास में ऐसा अनोखा युद्ध इससे पहले कभी नहीं हुआ था जब लाखों की सेना को मुट्ठी भर लोगों ने धूल चटा दी होे। गुरू गोबिन्द सिंह के नेतृत्व में सिखों ने यह कारनामा किया था। गुरू गोबिन्द सिंह समेत महज 43 सिख मुगल सेना को चीरते हुए निकल गए थे। इतिहासकार प्रोफेसर चरणजीत सिंह चानना बताते हैं कि सन 1704 के आसपास जब मुगलों का दमन चरम पर था तब गुरू गोबिन्द सिंह ने इस अत्याचार का विरोध करते हुए मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस कारण वे जबरिया धर्म परिवर्तन कराने में लगे मुगल शासकों को खटकने लगे थे।
मुगलों ने उन्हें हर हाल में जिंदा या मुर्दा पकड़ने की तमाम कोशिश की लेकिन वे नाकाम हो चुके थे। आखिरकार मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब को घेर लिया। इस पर गुरू गोबिन्द सिंह मुगलों को चकमा देकर वहां से निकल गए। मुगल उनका पीछा करने लगे। गुरू गोबिन्द सिंह जब सिरसा नदी पर पहुंचे तब नदी उफान पर थी। ऐसे में नदी को पार करने में अधिकांश लोग बह गए। अब गुरू गोबिन्द सिंह, उनके दो बेटे और 40 सिख यानि सिर्फ 43 लोग ही बचे थे।
उनका कारवां सुरक्षित स्थान की तलाश में चमकौर पहुंच गया और यहां एक कच्ची हवेली में ये सभी रुक गए। इधर मुगल सेना भी आ पहुंची और हवेली की घेराबंदी कर दी। उन्होंने गुरू गोबिंद सिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा लेकिन गुरूजी को घुटने टेकना मंजूर नहीं था। उन्होंने रणनीति के तहत छोटे समूहों को एक एक लड़ने के लिए भेजा। इन सिखों ने मारकाट मचाते हुए मुगलों की आधी से ज्यादा सेना को खत्म कर दिया हालांकि इस दौरान लड़ते-लड़ते तमाम सिख शहीद हो गए।
अंत में गुरू गोबिन्द सिंह ने शेष बचे दो साथी के साथ रात में मुगल सैनिकों को ललकारा। उन्होंने कहा कि मैं जा रहा हूं, हिम्मत है तो पकड़ लो। गुरू गोबिन्द सिंह ने मशाल लेकर खड़े मुगलों को मार गिराया। मशालें जमीन पर गिरने से बुझ चुकीं थीं और चारों तरफ अंधेरा छा गया था। अंधेरे में गुरूजी को पकड़ने के फेर में मुगल सैनिक आपस में ही भिड़ गए और गुरू गोबिन्द सिंह वहां से सुरक्षित निकल लिए। जब सुबह हुई तो मुगल सरदार वजीर खान चमकौर का नजारा देखकर हैरान रह गया। वहां चारों तरफ मुगल सैनिकों के शव पड़े हुए थे। मुगल सेना खत्म हो चुकी थी।
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