नैमित्तक श्राद्घ- किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्घ किया जाता है उसे नैमित्तिक श्राद्घ कहते हैं। किसी की मृत्यु हाेने पर एकादशा आदि इसी श्राद्घ के अंतर्गत आता है। इसमें भी विश्वेदेवों को स्थापित नहीं किया जाता है।
काम्य श्राद्घ – किसी कामना पूर्ति के लिए किया जाने वाला श्राद्घ काम्य श्राद्घ के नाम से जाना जाता है।
वृद्घि श्राद्घ- किसी भी प्रकार की वृद्घि होने पर इस प्रकार का श्राद्घ किया जाता है। जैसे जन्म या विवाद आदि मांगलिक कार्यों के समय। इसे नान्दीमुख श्राद्घ भी कहा जाता है।
सपिंडन श्राद्घ – इस श्राद्घ में पिण्डों को मिलाना होता है। मान्यता है कि जीव की मृत्यु के बाद वह प्रेत हो जाता है। प्रेत से पितर में ले जाने के लिए जाे प्रक्रिया अपनार्इ जाती है उसे सपिंडन श्राद्घ कहा जाता है।
पार्वण श्राद्घ – पितृपक्ष, अमावस्या या पर्व तिथि पर किए जाने वाले श्राद्घ को पार्वण श्राद्घ कहा जाता है। इस श्राद्घ में विश्वेदेव की स्थापना की जाती है।
गोष्ठी श्राद्घ – ये श्राद्घ सामूहिक रूप से संपन्न किए जाते हैं।
कर्मांग श्राद्घ – किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जिन श्राद्घों को किया जाता है, उन्हें कर्मांग श्राद्घ के नाम से जाना जाता है। सीमंतोन्नयन, पुंसवन जैसे संस्कारों के अवसर पर होने वाले श्राद्घ को कर्मांग श्राद्घ कहा जाता है।
शुद्घयर्थ श्राद्घ- शुद्घि के लिए इन श्राद्घों काे किया जाता है।
तीर्थ श्राद्घ- तीर्थ यात्रा में जाने के लिए किया जाता है।
यात्रार्थ श्राद्घ -यात्रा की सफलता के लिए किया जाता है।
पुष्टयर्थ श्राद्घ – इन्हें शारीरिक अथवा आर्थिक उन्नति के निमित्त किया जाता है।