हालांकि बांसवाड़ा की गोविंद गुरू जनजातीय यूनिवर्सिटी ने दोनों विषयों के अंक जोडऩे का फैसला किया है। विषयों से क्या फायदा?स्कूल स्तर पर बारहवीं कक्षा तक हिन्दी और अंग्रेजी विषय का पाठ्यक्रम काफी उच्च और गुणवत्तापूर्ण हेाता है। विश्वविद्यालय के अनिवार्य हिन्दी और अंग्रेजी विषय का स्नातक स्तर पर कोई औचित्य नहीं है। विद्यार्थी भी इन्हें केवल पास होने से ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं। प्रथम वर्ष में अनिवार्य हिन्दी और अंग्रेजी विषय के पेपर हैं। अब तक विद्यार्थियों के लिए हिन्दी या अंग्रेजी में उत्तीर्ण होना जरूरी था।
इन विषयों को वे तृतीय वर्ष तक उत्तीर्ण कर सकते थे। अबस्नातक स्तर पर हिन्दी और अंग्रेजी विषय में अलग-अलग पास होना जरूरी कर दिया है। उधर विश्वविद्यालय तीन साल से हिंदी अनिवार्य का पेपर ओएमआर पर करा रहा है। अब अंग्रेजी में पास होना जरूरी है, तो विश्वविद्यालय को इसमें भी यही प्रणाली लागू करनी पड़ सकती है।
बढ़ेगी विषयों में गंभीरता विद्यार्थी हिन्दी और अंग्रेजी विषय को गम्भीरता से नहीं लेते हैं। एक ही विषय में पास होने के नियम के चलते अधिकांश विद्यार्थी हिन्दी तोकुछ अंग्रेजी विषय को ही पास करते थे। इससे दोनों भाषा का ज्ञान और उसकी अनिवार्यता निरर्थक साबित हो रही थी। विश्वविद्यालय ने दोनों विषयों की महत्ता को देखते हुए यह फैसला लिया है।
ओएमआर जांच में आसानी
पीटीईटी, जेईई मेन्स, जेईई एडवांस और अन्य परीक्षाओं के पेपर ओएमआर पर होते हैं। इसी तरह हिंदी-अंग्रेजी का पेपर ओएमआर पर हुआ तो इसकी जांच आसानी से होगी। विश्वविद्यालय को पेपर और कॉपियां कम छपवानी पड़ेंगी। मालूम हो कि अंकतालिकाओं में सिर्फ ऐच्छिक विषयों के नंबर ही जोड़े जाते हैं। हिन्दी अथवा अंग्रेजी को पास करने के बावजूद विद्यार्थियों के अंक नहीं जुड़ते हैं।
अब तक हिंदी विषय का पेपर ही ओएमआर पर लिया जाता है। अंग्रेजी में भी यही पैटर्न लागू किया जा सकता है। उच्च स्तरीय बातचीत के बाद फैसला लिया जाएगा। डॉ. जगराम मीणा, परीक्षा नियंत्रक मदस विश्वविद्यालय