ट्रिपल तलाक़ का ऐतिहासिक फ़ैसला आने के बाद इसका श्रेय लेने की सियासत शुरु हो गई है। बीजेपी के नेताओं की राय में ट्रिपल तलाक का मुद्दा यूपी चुनाव में उन्होंनें उठाया और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना फ़ैसला दे दिया है। हार्डकोर हिन्दूत्व छवि के नेता सुब्रमण्यम स्वामी जैसे नेता साफ कह रहे हैं कि इस मौक़े पर सरकार को कॉमन सिविल कोड को लागू करने का फैसला भी लेना चाहिए। वहीं औबेसी ने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर अपनी बात में साफ कहा कि सरकार की मंशा तो तलाक की पूरी व्यवस्था को खत्म करवाने की थी लेकिन कोर्ट ने ऐसा नहीं किया। ज़ाहिर हैं कि ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर सियासत की गर्माहट जारी है और इस बीच कॉमन सिविल कोड का जिक्र भी हो रहा है। बीजेपी इसे अपना अगला पॉलिटिकल लिटमस टेस्ट मान कर चल रही है,जिसमें उसे कांग्रेस से अलग मुकाम पर खड़ा होना है। एक अलग लकीर खींचनी है कि सत्ता में आने के बाद कांग्रेस से अलग प्रचंड बहुमत से बनी मोदी सरकार ने क्या नया किया ? लेकिन सवाल ये कि देश की आजादी के सत्तर सालों में जो नहीं हो पाया वो मोदी सरकार कर पाएगी ? कॉमन सिविल कोड के मुद्दे पर जिस रूप में राजनीति हो रही है, वो सवाल पैदा कर रहा है कि क्या वाकई ये एक राजनीतिक मसला है ? विविधता में एकता के सूत्र में बंधे भारत में किस रूप में यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठाया जा रहा है ? इस राजनीतिक माहौल में कॉमन सिविल कोड लागू करवाना संभव है ?
ये दीगर बात है कि सुप्रीम कोर्ट एक नहीं बल्कि कई दफा कह चुका है कि कॉमन सिविल कोड को लागू करो…कांग्रेस की सरकारों के वक्त भी और अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार के वक्त भी…लेकिन सियासत की राहों में चलते हुए राजनीतिक दलों के लिए कॉमन सिविल कोड बर का छत्ता ही बना रहा है, जिसकी दबे स्वर में चर्चा खूब होती है लेकिन कोई सीधे हाथ नहीं लगाना चाहता। अलबत्ता मोदी सरकार ने लॉ कमीशन से रिपोर्ट मांग कर वो पहल की है जो सत्तर साल में नहीं हुई थी, मगर वो भी यूपी इलेक्शन के साये में,ट्रिपल तलाक के मामले में फैसला आने से पहले मानों सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया था। जैसे ही कोर्ट का फैसला आया, कॉमन सिविल कोड का बंद बोतल का सियासी मंत्र फिर निकाला गया है। सवाल ये है कि क्या 2019 तक देश में कॉमन सिविल कोड लाना वाकई संभव है ? अगर नहीं तो फिर आज क्यों इसकी गूंज है …। 1985 में राजीव गांधी की सरकार के वक्त एक मौका बना था, जिसमें शाह बानो के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को कॉमन सिविल कोड के मुद्दे पर राजी करने की जाती, लेकिन फिर वोट बैंक अपनी जगह पर था, ठीक वैसे ही जैसे आज बीजेपी के लिए ये वोट बैंक का मुद्दा बना हुआ है। दिलचस्प बात ये हैं कि बीजेपी के तीन कोर एजेंडा हैं। धारा 370,कॉमन सिविल कोड और राम मंदिर, तीनों एजेंडा कोर्ट के गलियारों में है।
देखिए कॉमन सिविल कोड पर बड़ी बहस, पत्रिका प्राइम टाइम डिबेट के इस हिस्से में….जहां आपको मिलेंगे इस सवालों के जबाव कि क्या राम मंदिर,धारा 370 के साथ कॉमन सिविल कोड को लेकर भी नई पहल आकार लेगी ? क्या मोदी सरकार का नया एजेंडा है ‘ट्रिपल सी’… ? क्या बीजेपी अपने मूल एजेंडे पर काम कर रही है ? बीजेपी के इस कार्ड का कांग्रेस के पास क्या है तोड़ ? ट्रिपल तलाक़ के फैसले का राजनीतिक फायदा उठाया जा रहा है? कॉमन सिविल कोड पर कितनी गंभीर है सरकार ? क्या अदालती फैसलों पर राजनीतिक प्रोपगंडा किया जा रहा है ? क्या कॉमन सिविल कोड तैयार करना इतना आसान है ? कॉमन सिविल कोड कैसे आएगा सहमति से या राजनीति से ? क्या बीजेपी 2019 के लिए अपना एजेंडा तय कर रही है ? क्या बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक की राजनीति चरम पर है ? क्या कभी कॉमन सिविल कोड बन पाएगा?