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राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के मायने, तो कई चुनौतियां भी हैं सामने

locationजयपुरPublished: Nov 21, 2017 06:36:47 pm

फिलहाल, तो राहुल के सामने हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने की है। या कम-से-कम गुजरात में तो सम्मानजनक स्थिति में लाने की तो है..

Rahul Gandhi
-राजेंद्र शर्मा-

राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे या नहीं, इस प्रश्न का जवाब आ ही गया। जी हां, राहुल ही होंगे कांग्रेस अध्यक्ष। वे अपनी मां सोनिया गांधी की जगह लेंगे, जो वर्ष 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं, सीताराम केसरी के बाद। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव प्रक्रिया को देखें तो पांच दिसंबर को ही नामजदगी पर्चों की स्क्रूटनी के बाद ही राहुल के नाम पर मुहर लग जाएगी। औपचारिक घोषण चाहे बाद में हो। ऐसे में लोगों के जेहन में कई सवाल भी उठ रहे होंगे। जाहिर है, सवाल हैं, तो जवाब भी हैं। माना जा सकता है कि राहुल की ताजपोशी कांग्रेस की नई राजनीति का दौर भी है और वंशवाद का नतीजा भी।
वजह, साफ है, इंदिरा गांधी के समय से कांग्रेस की पहचान ही गांधी-नेहरू परिवार से है। इसे राजनीतिक रूप से कांग्रेस की मजबूरी भी कहा जा सकता है, क्योंकि मानो या न मानो कांग्रेस के पास वोट दिलाने वाला नेता इस परिवार के अलावा नहीं है। अतीत में झांकें तो राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने राजनीति से दूर रहने का निर्णय किया था, क्या हुआ? कांग्रेस की बिगड़ती हालत उन्हें सियासत में ले ही आई। इसके बाद कांग्रेस का पुनर्जन्म-सा हुआ। तब से वे कांग्रेस की अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी शिद्दत से निभाती रहीं। अब उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण अध्यक्ष पद किसी को तो संभालना ही था। तो, कांग्रेस ने राहुल को चुना।

राहुल का अनुभव

याद करें राहुल गांधी का औपचारिक रूप से कांग्रेस की कमान संभालने का आगाज राजस्थान की राजधानी जयपुर से ही हुआ था। यहीं कांग्रेस के अधिवेशन में उन्हें उपाध्यक्ष चुना गया था। हालांकि वे 2004 से सक्रिय राजनीति में आ चुके थे। खैर, उपाध्यक्ष पद पर आसीन होने के बाद से पार्टी का प्रदर्शन खराब होता चला गया। इसके लिए उनके कमजोर नेतृत्व की बजाय यूपीए सरकार में हुए घोटालों को ज्यादा जिम्मेदार माना जा सकता है। खैर, पार्टी उनके उपाध्यक्ष के कार्यकाल में लोकसभा चुनाव 2014 की बुरी हार के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, और झारखंड गंवाया। दिल्ली में तो आप ने सफाया ही कर दिया। जहां 2009 के आमचुनाव में यूपी से कांग्रेस के 21 सांसद चुने गए थे। वहीं 2014 में सिर्फ दो सीटें आई।

 

महज राहुल और सोनिया गांधी की सीट पर ही जीत मिली और लोकसभा में पार्टी के 44 सांसद ही पहुंच पाए। तो, 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी के महज सात विधायक जीतेे। इसके उलट जब सोनिया आईं थी राजनीति में तब कांग्रेस देश में सिर्फ चार राज्यों में सत्तारूढ़ थी, लोकसभा में कांग्रेस के 114 सांसद थे। सोनिया के अध्यक्ष बनने के एक साल के भीतर कांगे्रस ने न सिर्फ 14 राज्यों में सत्ता हासिल की, बल्कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस नीत यूपीए ने 2004 और 2009 में केंद्र में सरकार भी बनाई। जाहिर है, राहुल से कांग्रेस को ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद होगी। इसका टेस्ट गुजरात चुनाव से हो जाएगा कि कितनी लंबी रेस वे दौड़ पाएंगे।

 

वर्तमान चुनौतियां

फिलहाल, तो राहुल के सामने हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने की है। या कम-से-कम गुजरात में तो सम्मानजनक स्थिति में लाने की तो है ही। हिमाचल में कांग्रेस सरकार रिपीट होती है (एकबार बीजेपी-एकबार कांग्रेस की परंपरा के बावजूद) तो उनके लिए सोने में सुहागा होगा। इसके बाद उनके लिए अगले साल अहम होगा कनार्टक में कांग्रेस की सत्ता बचाए रखने के साथ ही राजस्थान इत्यादि अन्य राज्यों में भी पार्टी को जीत दिलाने की रणनीति बनाने की चुनौती होगी। इसके अलावा उन्हें संगठनात्मक रूप से कांग्रेस को फिर से मजबूत करने के साथ ही कांग्रेस को विनिंग हैबिट के लिए फिर से तैयार करना होगा। ताकि 2019 के आमचुनाव में वे मोदी-शाह की जोड़ी के सामने चुनौती पेश कर सकें और अन्य विपक्षी पार्टियों में अपने नेतृत्व के प्रति भरोसा जगा सकें।

 

हाल ही, मणिपुर और गोवा में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद कांग्रेस का सरकार नहीं बना पाना राहुल की विफलताओं में शुमार है। वैसे, कुछ महीनों से जब से सोनिया गांधी का स्वास्थ्य गड़बड़ाया है, शायद कंधों पर आई जिम्मेदारी सेे राहुल में बदलाव आया है। उनमें बतौर विपक्षी नेता धार आ रही है। सोनिया गांधी ने इस बार हिमाचल और गुजरात में एक भी चुनावी सभा नहीं की, राहुल ही कमान संभाल रहे हैं। इसके अलावा अगर राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, तो वह है वंशवाद का आरोप लगाने वालों को अपनी परफोर्मेंस से जवाब देना।

 

सोशल मीडिया पर पैनापन

गुजरात चुनाव ने राहुल में न जाने कैसे नया उत्साह फूंक दिया है। वे कुछ अरसे से सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हैं। उनके ट्वीट में पैनापन और चुटीलापन नजर आने लगा है। उनके कुछ ट्वीट जैसे-विकास गांडो थ्यो छे….हर शख्स परेशान सा क्यूं है….इत्यादि को लोगों ने हाथों-हाथ लिया।

 

राहुल के विवादित बोल

राहुल गांधी के कई बार दिए गए विवादित या कहें बेतुके बयान भी उनके विरोधियों के लिए उनके खिलाफ हथियार साबित हुए। उन्होंने 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में शामिल लड़कों से बात कर रहा हूं, आईएसआई के बहकावे में मत आओ… दलितों को ऊपर उठने के लिए एस्केप वेलोसिटी की जरूरत है…गरीबी सिर्फ एक मानसिक स्थिति, इसका रोटी, रुपए और भौतिक चीजों से वास्ता नहीं जैसे बेतुके बयानों के साथ ही…चीन पर बोलते हुए कहा था कि भारत एक मधुमक्खी के छत्ते के समान है। इससे पहले 2012 में बोल गए, पंजाब में 10 में से 7 युवा नशेड़ी हैं, तो 2011 में उनका बयान …यूपी के लड़के कब तक पंजाब-दिल्ली में मजदूरी और महाराष्ट्र में भीख मांगेंगे भी काफी विवादास्पद रहा।

 

इसी साल वे बोले थे….राजनीति हर जगह है, आपकी शर्ट में, पैंट में, हर जगह है…तथा…अमरीका और यूरोप को मिला दें तो भारत उससे भी बड़ा है…जैसे बयानों ने भी उनके विरोधियों को निशाना साधने का मौका दिया। उनके 2007 में बिगड़े बोल थे…मेरा परिवार फैसले लेने में पीछे नहीं रहता चाहे भारत की आजादी हो या पाकिस्तान का बंटवारा। तो, 2017 में उनके मुखलिफों ने उनके बयान ‘जो लोग देवी को पूजते हैं वे ही बस में महिलाओं को छेड़ते हैं’ और ‘भाजपा आग लगाती है, बुझानी कांग्रेस का पड़ती है’ के कारण उन्हें खूब आड़े हाथों लिया। वैसे, पिछले कुछ महीनों से उनके बयान काफी सुलझे लग रहे हैं। लगता है, राजनीतिक परिपक्वता आ रही है, नहीं आई तो खमियाजा पार्टी को भुगतना ही पड़ेगा।

former congress president

राहुल होंगे 72 वें अध्यक्ष

राहुल गांधी कांग्रेस के 72 वें अध्यक्ष होंगे। अब तक बने 71 अध्यक्ष इस प्रकार हैं-व्योमेश चंद्र बनर्जी 1885, दादाभाई नौरोजी 1886, बदरुद्दीन तैयबजी 1887, जॉर्ज यूले 1888, विलियम वेदरवर्न 1889, फिरोज शाह मेहता 1890, आनंदानारुलू 1891, व्योमेश चंद्र बनर्जी 1892, दादाभाई नौरोजी 1893, अल्फ्रेड वेब 1894, सुरेंद्र नाथ बनर्जी 1895, रहीमतुल्ला एम. सयानी 1896, सी. शंकरन नायर 1897, आनंद मोहन बोस 1898, रमेश चंद्र दत्त 1899, एन. जी. चंद्रावरकर 1900, दिनशाह इडुलजी वाचा 1901, सुरेंद्र नाथ बनर्जी 1902, लाल मोहन घोष 1903, हेनरी कॉटन 1904, गोपाल कृष्ण गोखले 1905, दादाभाई नौरोजी 1906, रासबिहारी घोष 1907-08, मदन मोहन मालवीय 1909, विलियम वेडवर्न 1910, बिशन नारायण डार 1911, रघुनाथ नरसिंहा मुढोलकर 1912, नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर 1913, भूपेंद्र नाथ बोस 1914, लॉर्ड सत्येंद्र प्रसन्ना सिन्हा 1915, अंबिका चरण मजूमदार 1916, एनी बीसेंट 1917, मदन मोहन मालवीय 1918, सैयद हसन इमाम 1918, मोतीलाल नेहरू 1919, लाला लाजपत राय 1920, सी. विजय राघव चारिकर 1920, हाकिम अजमल खान 1921,
देशबंधु चितरंजन दास 1922, मोहम्मद अली जौहर 1923, मौलाना अबुल कलाम आजाद 1923, मोहनदास गांधी 1924, सरोजिनी नायडू 1925, एस. श्रीनिवास अयंगर 1926, मुख्तार अहमद अंसारी 1927, मोतीलाल नेहरू 1928, जवाहर लाल नेहरू 1929-30, सरदार वल्लभभाई पटेल 1931, मदन मोहन मालवीय 1932, नील सेनगुप्ता 1933, राजेंद्र प्रसाद 1934-35, जवाहर लाल नेहरू 1936-37, सुभाष चंद्र बोस 1938-39, मौलाना अबुल कलाम आजाद 1940-46, जे. बी. कृपलानी 1947, पट्टाभी सीतारमैया 1948-49, पुरुषोत्तम दास टंडन 1950, जवाहर लाल नेहरू 1951-54, यू. एन. ढेबर 1955-59, इंदिरा गांधी 1959, नीलम संजीव रेड्डी 1960-63, के. कामराज 1964-67, एस. निजालिंगप्पा 1968-69, बाबू जगजीवन राम 1970-71, शंकर दयाल शर्मा 1972-74, देवकांत बरुआ 1975-77, इंदिरा गांधी 1978-84, राजीव गांधी 1985-91, पी.वी. नरसिंहा राव 1992-96, सीताराम केसरी 1996-98 और सोनिया गांधी 1998-अब तक।
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