तब: हाथ पकड़वाए, गले मिलवाया था
विधानसभा चुनाव के दौरों के समय राहुल का रुख कुछ और था। तब गहलोत-पायलट को एकजुट दिखाने के लिए मंच पर उन्होंने कभी दोनों के हाथ पकड़कर खड़े कराया, कभी गले मिलवाया।
अब: पार्टी को एकजुट करने का प्रयास नहीं
राहुल का दो दिवसीय दौरा शनिवार को मकराना की किसान पंचायत के साथ सम्पन्न हो गया लेकिन पूरे दौरे पर नजर डालें तो गहलोत-पायलट खेमे के बीच शीतयुद्ध को पाटने और पूरी पार्टी को एक मंच पर लाने के प्रति वह प्रयास करते नहीं दिखे।
इस बार किसानों पर ही रहा फोकस
हालांकि राहुल मरुधरा से देश के किसानों को यह संदेश देने में जरूर सफल रहे कि तीनों कृषि बिल किसानों के हित में नहीं हैं और कांग्रेस उनके साथ है। कहा कि पूरी फसल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उद्योगपति मित्रों का कब्जा हो जाएगा। किसान-मजदूर फसल बेचते और खरीदते, दोनों बार ठगे जाएंगे।
गहलोत-पायलट: अपना-अपना कद
– अशोक गहलोत: राहुल का दौरा कराकर संदेश दिया कि मुख्यमंत्री के रूप में राज्य का कुशल नेतृत्व कर रहे हैं और गांधी परिवार से उनके रिश्ते और मजबूत हुए हैं।
– सचिन पायलट: सियासी संकट से पहले दौरों में राहुल और पायलट मंच पर और गाड़ी में बातचीत करते व ठहाके लगाते दिखते थे। अब वह स्थिति नहीं दिखी लेकिन पायलट को मंच पर सभी जगह प्रदेश प्रभारी के साथ बैठाया गया। चार में से दो सभाओं में बोलने का मौका दिया गया। इससे संदेश दिया गया कि पदों से हटने पर भी पायलट का महत्व कायम है।
गहलोत-डोटासरा से घिरे रहे राहुल
दोनों दिन के दौरे में राहुल मुख्य रूप से गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा से ही घिरे रहे। हालांकि उनके साथ राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल, प्रदेश प्रभारी अजय माकन और दिल्ली के अन्य नेता भी थे। माकन हर कार्यक्रम में पायलट को अपने साथ-साथ रखते नजर आए।