जयपुरउत्तर पश्चिम रेलवे पटरियों को स्वच्छ बनाए रखने के लिए कोशिश कर रहा है। ट्रेनों के टॉयलेट से पटरियों पर गिरने वाले अवशिष्ट से होने वाली गंदगी को रोकने के लिए रेलवे ट्रेनों में परंपराग टॉयलेट के स्थान पर अत्याधुनिक बायो टॉयलेट लगवा रहा है। कुछ ट्रेनों में यह टॉयलेट लगवाए गए हैं। इस टॉयलेट की खासबात यह है कि यह मानव मल को हवा और पानी में बदल देता है। इससे पटरियां गंदा नहीं होती हैं।
उत्तर पश्चिम रेलवे के सीपीआरओ तरूण जैन ने बताया कि
स्वच्छ भारत अभियान की दिशा में रेलवे ट्रेक पर होने वाली गंदगी को रोकने के लिए ट्रेनों में अत्याधुनिक बायो-टॉयलेट लगवाए जा रहे हैं। उत्तर पश्चिम रेलवे इस साल के अंत तक अपनी सभी ट्रेनों में यह नए टॉयलेट लगवाएगा। उन्होंने बताया कि अब तक 1400 से अधिक डिब्बों में बायो-टॉयलेट लगाए जा चुके हैं। आपको बता दें कि भारत सरकार ने 2013 से हाथ से मैला उठाने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया है। इसी कारण भारतीय रेलवे में भी मल से सम्बंधित सभी काम अब मशीन के द्वारा ही करवाए जाने की प्रणाली को शुरू करने के लिए सरकार ने ट्रेन में बायो टॉयलेट्स या जैविक शैचालयों को लगाने के निश्चय किया है। संसद में रेलवे बजट 2016-17 पेश करने के दौरान भूतपूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने डिब्रूगढ़ राजधानी ट्रेन का भी उल्लेख किया था। यह दुनिया की पहली बायो वैक्यूम टॉयलेट युक्त ट्रेन है, जिसे भारतीय रेलवे ने पिछले साल पेश किया था।
1407 डिब्बों में हुई शुरूआतबॉयोटॉलेट प्रणाली में जीवाणु मानव मल को पानी एवं हवा में बदल देता है। इससे वातावरण स्वच्छ एवं रोगाणुरहित रहता है। अब तक 1407 डिब्बों में 4960 बायो-टॉयलेट लगाए जा चुके हैं। यह बायो-टॉयलेट डिब्बों में पूर्णतया और आंशिक रूप से फिट किये गये है।
ग्रीन कोरिडोर बना रहा रेलवेरेलवे पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित काम भी कर रहा है। उत्तर पश्चिम रेलवे की ओर से ग्रीन कोरिडोर विकसित किए जा रहे हैं। पांच रेलखण्डों बाडमेर-मुनाबाब, पीपाड-बिलाडा, सादुलपुर- हनुमानगढ, सूरतगढ-अनूपगढ तथा सीकर-लोहारू को ग्रीन कॉरीडोर के रूप में स्थापित किया है। इनमें इन रेलखण्डों में संचालित सभी रेलसेवाओं में बायो-टॉयलेट लगाकर रेलवे ट्रेक पर मानव अपशिष्ट को गिरने से रोका जा रहा है।