-डोर स्टेप डिलेवरी में शामिल तमाम शॉपिंग, फूड एप शामिल डिलेवरी बॉय
-किसी एक के जरिए टैक्सी सर्विस देने वाले ड्राइवर
-ऑनलाइन एप को थर्ड पार्टी सर्विस देने वाले से लेकर ब्लड कलेक्शन करने वाले लोग
–फ्रीलांसर्स के तौर पर भी
फ्रीलांसर्स: जयपुर में भी कई फ्रीलांसर्स हैं जो विभिन्न पेशेवर सेवाओं जैसे कि ग्राफिक डिजाइन, वेब डेवलपमेंट, कंटेंट राइटिंग आदि में लगे हुए हैं। ये प्रमुख समस्याएं
–कमीशन की दिक्कत: कैब ड्राइवर से लेकर घर तक खाना व अन्य सामान पहुंचाने वाले लोगों को कमीशन की दिक्कत रहती है। शुरुआत में कम्पनियां अच्छा कमीशन देती हैं और धीरे-धीरे इसको कम कर दिया जाता है।
ये हो तो मिले फायदा: राज्य सरकार गिग वर्कर्स को लिए न्यूनतम वेतन की गारंटी देने का नियम लागू करे।
–सामाजिक सुरक्षा का अभाव: 12 से 15 घंटे और कई बार देर रात तक काम करने वाले गिग वर्कर्स के पास स्वास्थ्य बीमा व अन्य अन्य सामाजिक सुरक्षा के लाभ कम ही होते हैं। ऐसे में बीमारी और दुर्घटना के स्थिति में इन लोगों को काफी मुश्किल होती है।
समाधान: इनके लिए सरकार या फिर जिस कम्पनी के लिए काम कर रहे हैं, वो कम्पनी बीमा कराए।
–भुगतान की समस्या: ज्यादातर गिग वर्कर्स समय से भुगतान न होने की बात कहते हैं। इससे इनके सामने कई बार वित्तीय संकट खड़ा हो जाता है।
समाधान: कम्पनियों को अनुबंध को स्पष्ट करना चाहिए और इसमें सरकार को आगे आना चाहिए।
अर्थव्यवस्था को कर रहे मजबूत, इनकी भी हो सुनवाई
देश में राजस्थान पहला राज्य है, जो गिग वर्कर्स के लिए विधेयक लेकर आया। दूसरे राज्यों ने इसी के आधार पर काम शुरू किया, लेकिन राजस्थान में अब मामला ठंडे बस्ते में है। जबकि राज्य भर में चार लाख गिग वर्कर्स हैं। ये लोग अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं, लेकिन इनकी सुनवाई नहीं हो रही।
नीति आयोग-2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की गिग वर्कर्स की संख्या 2020-2021 में 77 लाख बताई गई थी। वर्ष 2029-2030 में यह बढकऱ 2.35 करोड़ होने की उम्मीद है।
एक रिपार्ट में गिग वर्कर्स की वैल्यू ऑफ मार्केट वर्ष 2023 में 37 लाख करोड़ की थी।
–आशीष सिंह, अध्यक्ष, राजस्थान गिग एंड एप बेस्ड वर्कर्स यूनियन