इन सम्मेलनों में भाजपा नेता ना सिर्फ नए कृषि कानूनों के फायदे और उससे जुडी भ्रांतियों की जानकारी दे रहे हैं, बल्कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार को किसानों विरोधी करार देने के लिए अब तक अधूरे रहे वादों को याद दिला रहे हैं।
उपचुनाव और किसान बाहुल्य क्षेत्रों पर फोकस
प्रदेश भाजपा के किसान सम्मेलनों का आयोजन ख़ास तौर से आगामी चार विधानसभा सीटों और किसान बाहुल्य क्षेत्रों पर है। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि पार्टी उपचुनाव में किसानों के एक बड़े वोट बैंक की नाराजगी और उससे होने वाले नुकसान से बचना चाहती है।
भाजपा का एक ऐसा ही किसान सम्मेलन कल रविवार को उपचुनाव क्षेत्र राजसमंद में हुआ। सम्मेलन में किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हरिराम रिणवां के अलावा प्रदेश उपाध्यक्ष माधोराम चौधरी, विधायक नारायण देवल, जिला प्रमुख रतनी देवी के अलावा बड़ी संख्या में क्षेत्र के किसान मौजूद रहे।
किसान आंदोलन के बीच भाजपा प्रदेश भर में किसान सम्मेलनों का आयोजन कर रही है। मकसद कृषि कानूनों को लेकर बन रहे पार्टी विरोधी नकारात्मक माहौल को कम करना है। दरअसल, किसान सम्मेलनों का आयोजन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर से शुरू हुआ था। इसके लिए प्रदेश संगठन ने अपने वरिष्ठ नेताओं को अलग-अलग जिलों में किसान सम्मेलन आयोजित करने के निर्देश दिए थे।
राजस्थान में भी कृषि कानूनों को लेकर किसानों में नाराजगी और आक्रोश कम नहीं है। केंद्र सरकार के विरोध में प्रदेश भर में किसान महापंचायतों और किसान सभाओं ने जोर पकड़ा हुआ है। किसान नेता राकेश टिकैत तक प्रदेश में धुंआधार किसान सभाएं करते हुए आंदोलन के पैमाने को बढाते दिख रहे हैं। इन तमाम मोदी सरकार विरोधी माहौल के बीच भाजपा नेताओं का किसानों के बीच जाकर उन्हें समझाना चुनौतियों भरा टास्क है।
किसानों के बीच जाकर उन्हें कृषि कानूनों के फायदे बताने के दौरान अब तक भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को विरोध का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि केंद्रीय मंत्रियों गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल तक को किसानों की खरी-खरी सुननी पड़ी है। केंद्रीय मंत्रियों के अलावा भी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता किसानों का आक्रोश झेल चुके हैं।
किसान सम्मेलनों में भाजपा नेता मौजूदा मोदी सरकार और तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान के समर्थन मूल्यों को तुलाना कर रहे हैं। वहीं समर्थन मूल्य, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और सरकारी मंडियों को बंद किये जाने को लेकर प्रधानमंत्री के आश्वासन और संदेश को भी किसानों तक पहुंचाया जा रहा है। पार्टी नेता किसानों को बता रहे हैं कि नए कृषि कानूनों से न तो मंडियां बंद होंगी, न किसान की जमीन ली जाएगी और न ही समर्थन मूल्य ख़त्म किया जाएगा।