बता दें कि राजनीति की पीच पर उपचुनावों को सत्ता का सेमीफाइन के रुप में देखा जाता है। ऐसे में भाजपा के इस हार के बाद प्रदेश में इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में इस उपचुनाव के नतीजों का असर भी दिखाई दे सकता है। तो वहीं उपचुनावों में मिली करारी हार के बाद राजस्थान भाजपा में बड़े बदलाव को तय माना जा रहा है।
यह भी पढ़ें
राजस्थान में हिल गई ‘भाजपा‘ की नींव, जानिएं क्या रहें इस ‘भूकंप‘ आने के कारण
अजमेर और अलवर लोकसभा के अलावा मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर उम्मीदवारों को उतारने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों को काफी मंथन करना पड़ा। भाजपा की ओर से किए गए तमाम प्रयास, रोड शो और घोषणाओं को जनता ने सिरे से इनकार करते हुए कांग्रेस को अपना समर्थन दिया। वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा पर भरोसा करते हुए 163 सीट लाकर अपना दबदबा कायम किया। वहीं अपने चार साल के कार्यकाल में जनता के भरोसे पर भाजपा खरी नहीं उतर सकी। जिसका परिणाम है कि उपचुनाव के दौरान तीनों सीटों से भाजपा को जनता ने सिरे से नकार दिया। जबकि नए साल पर उपचुनाव में कांग्रेस को जनता ने बड़ा तोहफा दिया है। तीनों सीटों पर सभी के अनुमनों का धता बताते हुए कांग्रेस ने अपना कब्जा लगभग जमा लिया है।
यह भी पढ़ें