दरअसल, यह योजना आमजन को सहज—आसान इलाज उपलब्ध कराने, सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों में भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं पाने और सरकारी अस्पतालों पर से मरीजों का दबाव कम करने के लिए शुरू की गई है। लेकिन सिर्फ सरकारी के लिए अनुमत किए गए पैकेज से सरकार की यह तीनों ही प्रमुख मंशाएं पूरी नहीं हो पा रही है।
एंजियोग्राफी : जीवन शैली आधारित बीमारी की जांच, वह भी बाहर योजना के संशोधित पैकेज में हृदय रोग की जांच के लिए की जाने वाली एंजियोग्राफी जांच भी शामिल की गई है। मौजूदा समय में हृदय रोग जीवन शैली आधारित तेजी से बढ़ता रोग है और यह युवाओं में भी तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन इसकी जांच भी निजी क्षेत्र में मान्य नहीं है।
मोतियाबिंद : 60 प्रतिशत की समस्या करीब 60 प्रतिशत मरीजों को जांच में मोतियाबिंद ऑपरेशन की जरूरत बताई जाती है। जिनमें सर्वाधिक बुजुर्ग हैं। लेकिन यह ऑपरेशन भी सिर्फ सरकारी में ही अनुमत है। ग्लुकोमा सर्जरी और कान—नाक—गला रोग विभाग में होने वाला साइनस का ऑपरेशन भी इसी श्रेणी में है।
सीेजेरियन होते ही योजना से बाहर परिवार में किसी महिला सदस्य का सीजेरियन प्रसव निजी अस्पताल में हुआ है तो चिरंजीवी बीमा का लाभ नहीं मिलेगा। जबकि जीवन शैली के कारण सीजेरियन प्रसव भी तेजी से बढ़े हैं। कई तरह की अन्य प्रसव जटिलताओं के साथ ही अति जोखिम श्रेणी की गर्भवती महिलाएं भी योजना के तहत सिर्फ सरकारी अस्पताल में ही इलाज करवा सकती है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में होने वाले कुछ अन्य ऑपरेशन भी सरकारी में ही अनुमत किए गए हैं।
मानसिक बीमारियों के पैकेज भी शामिल नहीं : मानसिक बीमारियों के कई इलाज पैकेज भी निजी क्षेत्र में अनुमत नहीं हैं, जबकि यह भी मौजूदा समय में तेजी से बढ़ती बीमारी है। तो निजी मेडिक्लेम मजबूरी !
बीमा क्षेत्र के विशेषज्ञों से बातचीत में सामने आया कि निजी मेडिक्लेम में उक्त तीनों प्रक्रियाओं का लाभ भी निजी अस्पतालों में मिलता है। ऐसे में बड़ी समस्या यह हो गई है कि इनका लाभ भी लेने के लिए निजी मेडिक्लेम कराना उनकी मजबूरी बन रहा है।
… कार्ड है, लेकिन खर्च करने होंगे 25 से 30 हजार रूपए दौसा जिले के निवासी 65 वर्षीय बुजुर्ग को मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाना है। उनके पास चिरंजीवी बीमा योजना का कार्ड है। उनके पास निजी मेडिक्लेम भी नहीं है। अब या तो उन्हें सरकारी में ही ऑपरेशन करवाना होगा या निजी में ऑपरेशन का 25 से 30 हजार रूपए खर्चा करना होगा।
सरकार का नीतिगत निर्णय, बदलना भी सरकार पर निर्भर राज्य सरकार ने हाल ही ऐसे जरूरतमंदों का बीमा योजना के तहत नि:शुल्क इलाज कराने के अधिकार जिला कलक्टर को दिए हैं, जिनका पंजीयन नहीं हुआ है। स्टेट हेल्थ एश्योरेंस एजेंसी के सूत्रों के अनुसार किसी भी पैकेज को जोड़ना या घटाना सरकार की मंशा पर ही निर्भर है, उक्त पैकेज निजी में अनुमत नहीं करने का निर्णय भी सरकार का नीतिगत निर्णय है। इस बारे में एजेंसी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणा राजोरिया और अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ.अमित यादव से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो सका।