आज के राजस्थान का गठन 7 चरणों में हुआ था। 1952 में आम चुनाव की शुरुआत से पहले प्रदेश में मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री पद नाम होता था। पहले चरण में मत्स्य संघ के बाद दूसरे व तीसरे चरण में क्रमशः प्रोफेसर गोकुल लाल असावा और माणिक्य लाल वर्मा प्रधानमंत्री बने। दोनों नेताओं से जुड़े किस्से बताते हैं कि तब राजनीति में मिशन को लेकर काम करने के साथ स्वाभिमान का भाव हमारे नेताओं में किस तरह से कूट-कूट कर भरा था। रियासतों के विलीनीकरण के दौर में सर्वेसर्वा रहे तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को इन नेताओं की जीत के आगे झुकना पड़ा था।
दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को जब राजस्थान संघ का गठन हुआ, तब गोकुल लाल असावा प्रधानमंत्री बने थे। देवली में जन्मे असावा की प्रारंभिक शिक्षा भीलवाड़ा के शाहपुरा में हुई और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र से एमए करने के बाद वे कोटा के हर्वर्ड कॉलेज में पढ़ाने लगे, जो कि वर्तमान में राजकीय कॉलेज है। गांधीवादी असावा नियुक्ति के बाद कॉलेजों में धोती कुर्ता पहन और सिर पर टोपी धारण कर जाने लगे तो कॉलेज के तत्कालीन अंग्रेज प्रिंसिपल ने अनुमति नहीं दी और नौकरी से हटाने की धमकी दी। असावा ने यह पहनावा बदलने से साफ इंकार कर दिया और नौकरी छोड़ दी। जब वह प्रधानमंत्री बने तो रियासत विलीनीकरण महकमे की तरफ से सरदार पटेल ने एक आईपीएस अफसर को सलाहकार बनाकर भेजा। असावा ने यह कहते हुए अफसर को ज्वाइन कराने से इंकार कर दिया कि उनका गरीब प्रदेश इतने भारी वेतन वाले अफसर का बोझ नहीं झेल सकता। पटेल की जीत के आगे असावा टस से मस नहीं हुए। असावा ने प्रधानमंत्री के रूप में तय किया गया उनका वेतन लेने से भी इनकार कर दिया था। हुआ यूं कि जब उनका निजी सचिव तनख्वा का बिल लेकर आया तो असावा ने कहा कि वे कोई सरकारी मुलाजिम नहीं बल्कि जनता के सेवक हैं। प्रजामंडल खर्चे के लिए एक ₹100 प्रतिमा देता है वही मेरे लिए काफी है। निजी सचिव ने कहा आप तो साइन कर दें। इस रकम को दान कर देंगे। अपने लिए किसी भी रूप में वेतन की राशि लेने से असावा ने साफ इंकार कर दिया। असावा अब कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति में राजस्थान की रियासतों से नामित होने वाले अकेले सदस्य थे। राजस्थान गठन के तीसरे चरण में 18 अप्रैल 1948 को संयुक्त राजस्थान बना तो मेवाड़ के वरिष्ठ नेता माणिक्य लाल वर्मा प्रधानमंत्री बने।
पंडित नेहरू की मंशा के बावजूद नहीं मिला टिकट
नवलगढ़ से जुड़े उद्योगपति सेठ रामनाथ पोद्दार तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु की मंशा के बावजूद राज्यसभा का टिकट हासिल नहीं कर पाए थे। इस घटना का जिक्र किया 1952 में राज्यसभा चुनाव हुए तब प्रारंभिक वर्षों में राजस्थान में 9 में से 2 सदस्यों को हर 2 साल बाद रिटायर कर नए चुनाव करवाने थे। 2 सदस्यों में बरकतुल्लाह खान तथा रामनाथ पोद्दार को लॉटरी के जरिए रिटायर किया गया। बरकतुल्लाह खान कांग्रेस से पुणे टिकट लेने में कामयाब रहे। पोद्दार का टिकट कट गया।