मुख्यमंत्री की ओर से विधायकों और ब्यूरोक्रेसी को भोज कराना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी मुख्यमंत्री इस तरह की डिनर पार्टी का आयोजन कर चुके हैं। ये एक तरह से राजनीतिक परम्परा बन गई है। लेकिन हर बार इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जाते हैं। इसीलिए तो इस तरह के भोज और इससे जुडी सियासी हलचलों को ‘डिनर पॉलिटिक्स’ का नाम दिया गया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से आयोजित हो रहे रात्रि भोज के इस बार कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। दरअसल, बिते कुछ महीने कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छे नहीं गुज़रे हैं। चाहे बात कर्नाटक की हो या गोवा की। या फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद रुठ जाने की। पार्टी की अंदरूनी हलचलें उबाल पर हैं। इन्हीं संकेतों को देखते हुए कुछ राज्यों में पार्टी की कमज़ोर होती पकड़ भी चर्चाओं में हैं।
जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार दिए जा रहे डिनर के ज़रिये पार्टी के तमाम कांग्रेस विधायकों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे। प्रदेश सरकार को आने वाले दिनों में अपने विधायकों से किसी तरह का खतरा ना हो इसके लिए उन्हें एकजुट रखना ही सीएम का सबसे पहला मकसद बना हुआ है।
इसी साल पायलट भी दे चुके डिनर
राजस्थान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट इसी साल की जनवरी में रात्रि भोज दे चुके हैं। तब भोज के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा तमाम कांग्रेस विधायक और अन्य कांग्रेसी नेता भी पहुंचे थे।
राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश में भी पिछले दिनों डिनर पॉलिटिक्स सुर्ख़ियों में रहा था। वहां भी कमलनाथ गुट और ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के बीच खींचतान और अन्य सियासी हलचलों के बीच ‘पोलिटिकल’ डिनर का आयोजन किया गया था। मंत्री तुलसी सिलावट के घर पर हुए इस डिनर में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य समेत लगभग सभी कांग्रेस विधायक पहुंचे थे। वहां भी इस डिनर के कई तरह से सियासी मायने निकाले गए थे। हालांकि सीएम कमलनाथ ने पत्रकारों से बातचीत में आश्वस्त किया था कि मध्य प्रदेश में कर्नाटक या गोवा जैसे कोई हालात नहीं हैं।