उन्होंने कहा कि 2013 में जनता ने उन्हें कांग्रेस या भाजपा की गोदी में जाकर बैठने के लिए नहीं चुना था। अकेले राजपा में रहकर बहुत कुछ करने की गुंजाइश में नहीं थी। बसपा सबसे अच्छा विकल्प थी। उन्होंने बसपा में जाने का एक कारण और बताया कि बसपा की छवि पिछड़े, दलित वोट बैंक वाली है। लेकिन उसकी परिकल्पना बहुजन की है। उन्होंने किरोड़ीलाल मीणा के राजपा छोड़ भाजपा में जाने पर अफसोस भी जताया। उन्होंने कहा कि नामांकन के समय कांग्रेस और भाजपा के कई नेता बसपा से जुडऩे वाले हैं।
मायावती का दौरा
प्रदेश प्रभारी मुनकाद अली ने बताया कि बसपा प्रमुख मायावती 25, 26, 27 नवंबर को प्रदेश दौरे पर रहेंगी। इस दौरान वह भरतपुर, दौसा, बांदीकुई, करौली, जालौर और आमेर में उनकी सभाएं प्रस्तावित है। स्थान का अंतिम चयन होना बाकी है। आमेर में पिलानिया के समर्थन में 26 नवंबर को सभा होना तय है।
प्रदेश प्रभारी मुनकाद अली ने बताया कि बसपा प्रमुख मायावती 25, 26, 27 नवंबर को प्रदेश दौरे पर रहेंगी। इस दौरान वह भरतपुर, दौसा, बांदीकुई, करौली, जालौर और आमेर में उनकी सभाएं प्रस्तावित है। स्थान का अंतिम चयन होना बाकी है। आमेर में पिलानिया के समर्थन में 26 नवंबर को सभा होना तय है।
राजस्थान से राजपा विदा
प्रदेश में पिछले चुनावों में मैदान में आई राजपा के बैनर तले लालसोट से विधायक किरोड़ीलाल मीणा, अलवर के राजगढ़ से किरोड़ीलाल मीणा की पत्नी गोलमा देवी, दौसा के सिकराय से गीता वर्मा और आमेर से नवीन पिलानिया विधायक चुने गए थे। पिलानिया को छोड़ शेष अन्य तीनों भाजपा में जा चुके हैं। अब पिलानिया के पार्टी छोडऩे से राजपा की राजस्थान से विदाई तय हो गई है।
प्रदेश में पिछले चुनावों में मैदान में आई राजपा के बैनर तले लालसोट से विधायक किरोड़ीलाल मीणा, अलवर के राजगढ़ से किरोड़ीलाल मीणा की पत्नी गोलमा देवी, दौसा के सिकराय से गीता वर्मा और आमेर से नवीन पिलानिया विधायक चुने गए थे। पिलानिया को छोड़ शेष अन्य तीनों भाजपा में जा चुके हैं। अब पिलानिया के पार्टी छोडऩे से राजपा की राजस्थान से विदाई तय हो गई है।
भाजपा-राजपा और अब बसपा
पिलानिया ने पहला चुनाव 2008 में भाजपा के टिकट पर आमेर से लड़ा। तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2013 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया तो वह बागी हो गए और एन समय में राजपा में चले गए। उनका मुकाबला भाजपा के सतीश पूनिया से हुआ। चूंकि दोनों ही नेता जाट समुदाय से थे, ऐसे में पिलानिया की राजपा में जाने की ‘चाल’ ने उन्हें जीत दिला दी। किरोड़ीलाल का साथ मिलने से उन्हें मीणा समाज के वोट मिल गए और आमेर से मामूली अंतर से चुनाव जीत गए। इस बार परिस्थिति कुछ अलग थी, किरोड़ीलाल वापस भाजपा में जा चुके हैं। भाजपा पूनिया को फिर से उम्मीदवार बना चुकी है। ऐसी सूरत में पिलानिया को अब मीणा समाज के वोटों का विकल्प तलाशना था। यही वजह है कि उन्होंने बसपा को चुना। इससे उन्हें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटों का लाभ मिल सकता है।
पिलानिया ने पहला चुनाव 2008 में भाजपा के टिकट पर आमेर से लड़ा। तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2013 में भाजपा ने उनका टिकट काट दिया तो वह बागी हो गए और एन समय में राजपा में चले गए। उनका मुकाबला भाजपा के सतीश पूनिया से हुआ। चूंकि दोनों ही नेता जाट समुदाय से थे, ऐसे में पिलानिया की राजपा में जाने की ‘चाल’ ने उन्हें जीत दिला दी। किरोड़ीलाल का साथ मिलने से उन्हें मीणा समाज के वोट मिल गए और आमेर से मामूली अंतर से चुनाव जीत गए। इस बार परिस्थिति कुछ अलग थी, किरोड़ीलाल वापस भाजपा में जा चुके हैं। भाजपा पूनिया को फिर से उम्मीदवार बना चुकी है। ऐसी सूरत में पिलानिया को अब मीणा समाज के वोटों का विकल्प तलाशना था। यही वजह है कि उन्होंने बसपा को चुना। इससे उन्हें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटों का लाभ मिल सकता है।