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राजस्थान का ये किसान पूरी दुनिया के लिए बन गया मिसाल, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

locationजयपुरPublished: Mar 17, 2019 04:05:06 pm

Submitted by:

santosh

जैविक खेती के प्रति जागरूकता व पहचान बनाने के लिए झालावाड़ जिले के गांव मानपुर के किसान हुकमचंद पाटीदार को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

Hukumchand Patidar
जयपुर। जैविक खेती के प्रति जागरूकता व पहचान बनाने के लिए झालावाड़ जिले के गांव मानपुर के किसान हुकमचंद पाटीदार को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। 2003 में एक हैक्टेयर से हुकमचंद ने जैविक खेती शुरू की थी।
इनके प्रयास से जिले में 360 हैक्टेयर क्षेत्र से अधिक में जैविक खेती होने लगी। पाटीदार ने जैविक तरिके से धनिया, मेथी, लहसुन और गेंहू की सफल पैदावार के प्रयास में सफलता हासिल की है। मानपुरा गांव के हुकमचंद पाटीदार झालावाड़ जिले में पहले पदमश्री हैं।
हुकुम चंद पाटीदार ने बताया कि पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर बहुत खुशी हो रही है। देश को आजाद होने के बाद से अब तक किसानों को बंधुआ मजदूरों की दृष्टि से देखा जाता था। ऐसे में वर्तमान सरकार ने देश के अन्नदाता, जो अपने आप को खेत खलिहानों में खपा देता है और व्यस्ततम जीवन जीता है, ऐसे किसान को पद्मश्री जैसा पुरस्कार देकर एक बहुत बड़ा काम किया है।
हुकुम चंद पाटीदार ने इस पुरस्कार का श्रेय उन सभी किसानों को दिया जो शुरुआत से उनसे जुड़े हुए हैं। अभी तक उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं। उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को भी श्रेय देते हुए कहा कि पैदावार में कमी होने के बाद भी लगातार मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा रहा और मेरा उत्साहवर्धन किया।
कुछ साल पहले सत्यमेव जयते में पहली बार झालावाड़ जिले के मानपुरा गांव के स्वामी विवेकानंद जैविक कृषि अनुसंधान केन्द्र (कृषि फार्म) के संस्थापक हुकमचंद पाटीदार ने देश के सामने आकर जैविक खेती के बारे में बताया। इसके बाद से ही वे देश दुनिया की नजर में चमकने लगे। फिर भी लगातार अपने प्रयासों से नित नए प्रयोग से आज उन्होंने वो मकाम हासिल कर लिया जिसकी लोग कल्पना ही कर सकते थे।
हुकम चंद पाटीदार के जैविक कृषि फार्म पर नित नए प्रयोग करते हुए जैविक फसल का उत्पादन हो रहा है। जहां से विश्व के कई देशों में रहने वाले लोगों की रसोई तक इस फार्म का अनाज पहुंचता है। हुकमचंद बताते हैं कि सबसे पहले चार बीघा खेत पर जैविक फसल उत्पादन किया। पहले साल गेहूं की फसल उत्पादन में चालीस प्रतिशत गिरावट आई, लेकिन यह सोच लिया था कि कुछ भी हो रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी का उपयोग नहीं करेंगे।
बैंक से लोन लिया। पंचगव्य का वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर उसका उपयोग किया। इस बार फसल अच्छी हुई। नुकसान की भरपाई होने लगी। सिलसिला चल पड़ा। पूरे चालीस एकड़ में फैले फार्म में जैविक आधारित कृषि शुरू कर दी। शुरुआत में कम उत्पादन, मार्गदर्शक नहीं होना, विकल्प की कमी, बाजार आदि की समस्याएं भी आई लेकिन हार नहीं मानी। तब से लेकर अब तक त्वरित वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर जैविक फसल उत्पादन जारी है।
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