यूं कहें कि सरकार का दूसरा साल सीएम गहलोत की जादूगरी के लिए जाना जाएगा। साल 2020 का मध्यान्ह गहलोत सरकार के लिए संकट लेकर आया जब तत्कालीन डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ बगावत कर दी और वे मानेसर चले गए। पायलट समर्थक विधायकों ने दावा भी किया कि गहलोत सरकार अल्पमत में है और उनके साथ 30 से ज्यादा विधायक है। इसके बाद गहलोत ने तरकश से तीर निकालने शुरू किए। एक ऑडियो टेप सामने आया जिसमें सरकार गिराने की बात सामने आई।
सीएम गहलोत और अन्य नेताओं ने आरोप लगाया कि इसमें कांग्रेस के एक विधायक और केन्द्र के एक मंत्री की आवाज है। सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी ने टेप को लेकर एसओजी को पत्र भी दिया। इसके बाद पायलट के साथ मंत्री विश्वेन्द्र सिंह व रमेश मीणा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। पायलट से पार्टी अध्यक्ष का पद भी छीना गया और शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा को पार्टी की कमान सौंपी। उधर सीएम गहलोत ने कांग्रेस के सभी विधायकों को पहले जयपुर और बाद में जैसलमेर शिफ्ट कर दिया। राजनीतिक ड्रामा लगातार चल रहा था। दिल्ली के कांग्रेस नेताओं ने भी मोर्चा संभाला। गहलोत के पक्ष में कांग्रेस के विधायकों के साथ-साथ निर्दलीयों, बीटीपी और माकपा के एक विधायक का भी पूरा समर्थन था।
गहलोत को विश्वास भी था कि वे सरकार को कहीं जाने नहीं देंगे। गहलोत ने पायलट पर भाजपा के साथ मिलने का जोरदार हमला भी किया। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह पर खुलेतौर पर पैसे के लेन-देन के आरोप भी लगा दिए।गहलोत की ये कार्यशैली कुछ सियासी संदेश दे रही थी। गहलोत के तीखे तेवर के आगे बीजेपी आलाकमान को बैकफुट पर आना पड़ा, हालांकि सियासी संकट में कई बार ऐसा लगा कि सरकार गिर सकती है।
इस दरम्यान एक नजारा ऐसा भी देखने को मिला जब विधानसभा सत्र बुलाने के लिए सरकार ने राजभवन में धरना दिया। दोनों ओर से शह और मात का खेल चल रहा था इस बीच एकाएक कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी की एंट्री हुई। पायलट और उनके समर्थक विधायकों की राहुल गांधी के साथ बैठकें हुई। पायलट और बागी विधायकों को राजी किया और पायलट की री एंट्री हुई। एक राजनीतिक संकट का अंत हुआ।पूरे प्रकरण से साबित हुआ कि जादूगर की जादूगरी चल पड़ी और सरकार बच गई और कांग्रेस आलाकमान की नजरों में एक बार फिर तारणहार साबित हुए