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राजस्थान के काले कानून को लेकर विरोध हुआ तेज- बदलाव पीछे आखिर क्या है सरकार की मंशा…

locationजयपुरPublished: Nov 01, 2017 10:47:49 pm

कानूनों में बदलाव लाकर सरकार आखिर क्या करना चाहती है? जनता की आवाज दबाना चाहती है? भ्रष्टों को बचाना चाहती है?

rajasthan government ordinance
प्रभात शर्मा।

कोई भी सत्ताधीश जब मदांध की मुद्रा में आ जाता है तो वो देश-प्रदेश निरंकुश शासन के हाथों में चला जाता है। लोकतंत्र और उसके मूल्यों को ताक में रख कर ऐसी चीजों को कानूनी अमलीजामा पहनाया जाता है, जो जनता के अधिकारों का दमन करती हो। बहुत ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है…राजस्थान में जो कुछ हो रहा है। वो सभी जानते हैं। कानूनों में बदलाव लाकर सरकार आखिर क्या करना चाहती है? जनता की आवाज दबाना चाहती है? भ्रष्टों को बचाना चाहती है? आखिर कौन उठाएगा आवाज? लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए कौन खड़ा होगा? किसी को तो खड़ा होना ही होगा? राजस्थान पत्रिका ने अपने कर्तव्यों और पाठकों के अधिकारों से कभी मुंह नहीं मोड़ा। एक बार फिर पत्रिका ने निडरता और निर्भीकता का परिचय देते हुए ये फैसला किया कि “जब तक काला तब तक ताला”…
राजस्थान सरकार जब भ्रष्ट लोक सेवकों को बचाने और जनता की आवाज को दबाने वाले काले कानून पर मुहर लगाने जा रही थी तभी राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने अपने अग्रलेख में जनता उखाड़ फैंकेगी में इस कानून के पीछे छिपे सच को जनता के सामने उजागर कर दिया… इस काले सच की उजली तसवीर जब लोगों के बीच चर्चाएं आम हुई तब विपक्ष और विभिन्न सामाजिक संगठन भी एक्शन में आए … इसके बाद पूरा मामला सरकार ने प्रवर समिति के पाले में डाल दिया. पर हकीकत कुछ और भी है ।
सरकार के इस कदम के पीछे छिपे मकसद को आज राजस्थान पत्रिका समाचार समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने अपनेे अग्रलेख जब तक काला तब तक ताला के जरिए जनता के बीच रखा… लेकिन इस बार इस सच के साथ एक प्रण भी है… इस प्रण के बारे में आपको बाद में बताएंगे, उससे पहले आपको बताते हैं… आज के अग्रलेख में किए गए वो खुलासे जो सरकार की रीति नीति और नीयत पर प्रश्न खड़ा करती हैं…
नियम ताक पर –

विधानसभा में ये नियम है कि पहले विधेयक का परिचय दिया जाए, फिर उसे विचारार्थ रखा जाए, उस पर बहस हो। उसके बाद ही कमेटी को सौंपा जाए। लेकिन प्रश्नकाल में ही हंगामे के बीच ध्वनिमत से प्रस्ताव पास करके विधेयक प्रवर समिति को सौंप दिया गया…
नियमानुसार कोई भी विधायक इस विधेयक को निरस्त करने के लिए परिनियत संकल्प लगा सकता है, जो कि भाजपा विधायक घनश्याम तिवाड़ी लगा चुके थे और आसन द्वारा स्वीकृत भी हो चुका है। उसे भी दरकिनार कर दिया गया…
विधेयक 26 के बजाए 24 अक्टूबर को ही प्रवर समिति को दे दिया गया। सारी परम्पराएं धवस्त कर दी गईं….

नियम ये भी है कि एक ही केन्द्रीय कानून में राज्य संशोधन करता है तो दो अध्यादेश एक साथ नहीं आ सकते। एक के पास होने पर ही दूसरा आ सकता है। जबकि यहां दो विधेयकों को एक साथ पटल पर रख दिया गया….
लोकतंत्र में जनहित ही सर्वोपरि है। इसी को ध्यान में रखते हुए राजस्थान पत्रिका समूह ने प्रण लिया है “जब तक काला, तब तक ताला”…. सरकार जब तक इस काले कानून को पूरी तरह वापस नहीं ले लेती और जब तक इस कानून को जनता पर थोपे जाने का खतरा टल नहीं जाता… पत्रिका में सरकार की मुखिया और उनसे संबंधित किसी भी समाचार का प्रकाशन और प्रसारण नहीं होगा। जनता की आवाज बुलंद रखने वाले पत्रिका ने ये फैसला जनता के सहयोग के बूते, जनता के दम पर राजस्थान के सुनहरे भविष्य के लिए किया है…
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