इससे पहले जब यह विधयेक सामने आया था, तो इसे लेकर पूरे देशभर में चर्चा तेज थी। जिसमें कई बड़े नेताओं ने राज्य सरकार पर शब्दों के बाण भी चलाए। विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं ने भी अपनी सरकार को घेरने में पीछे नहीं रहे। जानें काला कानून पर किस नेता ने क्या कहा था….
कांग्रेस नेताओं ने ये कहा था काला कानून पर- राहुल गांधी- राजस्थान सरकार के अध्यादेश को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीटर के जरिए अपना निशाना साधते हुए कहा था कि ‘मैडम चीफ मिनिस्टर हम 21वीं सदी में रह रहे हैं। यह साल 2017 है, 1817 नहीं।’
पूर्व सीएम अशोक गहलोत- प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी ट्वीट कर इस प्रस्तावित काले कानून पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। गहलोत ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए थे। जबकि अपने पहले ट्वीट में के जरिए उन्होंने कहा था कि ”श्री गुलाब कोठारी का सम्पादकीय जनता और मीडिया की चिन्ताओं को आवाज देने वाला है। #RajasthanOrdinance ने पूरे देश में प्रदेश की बदनामी कराई है।”
सचिन पायलट- प्रदेश सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए प्रदेश राजस्थान कांग्रेस के बड़े नेता सचिन पायलट ने कहा था कि बिल का लाया जाना प्रदेश सरकार की असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है। वहीं इसके जरिए लोकतंत्र का मजाक उड़ाया जा रहा है। इस संशोधन से आम आदमी के अधिकारों और उसकी आजादी का हनन किया जा रहा है।
नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी- रामेश्वर डूडी ने इस बिल को भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला बताया था। साथ ही कहा था कि पूरा देश इस सरकार के सोच के खिलाफ है। उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि सरकार के भी कई नुमाइंदे भी बिल का विरोध कर रहे है। इसलिए सरकार को इसमें सोचना चाहिए।
वहीं दौसा से विधायक किरोड़ी लाल मीणा ने कहा था कि कानून प्रावधानों को ताक में रखकर सरकार इस काले कानून को लाने की कोशिश में लगी हुई है। जो गलत है। आम आदमी पार्टी ने कहा था-
कुमार विश्वास- आप पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने राजे सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि महारानी वसुंधरा अभी तक भूल नहीं पाई हैं कि राजशाही खत्म हो चुका है। वो अपना काम महिला किंम जॉन्ग की तरह कर रही हैं।
सत्ता पक्ष के नेताओं ने भी चलाए थे शब्द बाण- यह काला कानून है। प्रवर समिति को भेजना ही पर्याप्त नहीं है। इस विधेयक को सरकार तुरंत वापस ले। – घनश्याम तिवाड़ी, वरिष्ठ विधायक,
भाजपा ने इस बिल को लेकर पहले ही सरकार को और मुख्यमंत्री चेता दिया था फिर भी यह बिल लाया गया। – भवानी सिंह राजावत, विधायक, भाजपा माणकचंद सुराणा ने कहा था कि इमरजेंसी कांग्रेस की देन थी तो ये सरकार क्या कर रही है। भ्रष्ट लोक सेवकों के खिलाफ जन प्रतिनिधियों का भ्रष्टाचार उजागर होता है तो होने देना चाहिए। आखिर चुनाव से एक साल पहले इस कानून को लाने की जरूरत ही क्या पड़ी।
बिल के पक्ष में ये थे बयान- अध्यादेश पर राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा था कि साफ छवि के अधिकारियों को बचाने के लिए इन अध्यादेश को लाया गया है। क्योंकि ईमानदार अधिकारी काम के वक्त डरते थें कि कोई उन्हें किसी केस में ना फंसा दे।
आखिर क्या था इस बिल में… इस कानून के मुताबिक, राज्य के सेवानिवृत्त एवं सेवारत न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और लोकसेवकों के खिलाफ ड्यूटी के दौरान किसी कार्रवाई के लिए सरकार की पूर्व अनुमति के बिना उन्हें जांच से संरक्षण की बात कही गई थी। तो वहीं विधेयक के मुताबिक, ऐसे मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक भी शामिल था। इतना ही नहीं किसी तरह की कोई रिपोर्ट पर इसमें सजा का प्रवधान के साथ कड़ा जुर्माना भी था। लोक सेवकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए सरकार 180 दिन में अपना निर्णय देती। इसके बाद भी अगर संबंधित अधिकारी या लोकसेवक के खिलाफ कोई निर्णय नहीं आता है, तो अदालत के जरिए इनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई जा सकती थी।