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छात्रों को पीछे धकेल रही राजस्थान की भाजपा सरकार!

locationजयपुरPublished: Feb 17, 2016 03:36:00 pm

राजस्थान की भाजपा सरकार की स्कूली पाठ्यक्रम बदलने के पीछे मंशा कुछ साफ नहीं दिख रही है। पाठ्यक्रम बदलने का फैसला छात्रों के भविष्य के साथ छिलवाड़ सा लग रहा है

राजस्थान की भाजपा सरकार की स्कूली पाठ्यक्रम बदलने के पीछे मंशा कुछ साफ नजर नहीं आ रही है। सरकार का पाठ्यक्रम बदलने का फैसला छात्रों के भविष्य के साथ छिलवाड़ सा लग रहा है। सरकार के ताजा फैसले के मुताबिक कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम से विदेशी लेखकों की रचनाएं हटा दी गई हैं। उनकी जगह उन स्थानीय लेखकों को शामिल किया गया, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं।

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नहीं पढ़ पाएंगे विदेशी कवियों को
आठवीं के पाठ्यक्रम से विदेशी लेखक जॉन कीट्स, थॉमस हार्डी, विलियम ब्लैके, टीएस इलियॉट और एडवर्ड लेयर की रचनाओं को हटा दिया गया है। उनकी जगह स्थानीय लेखकों की रचनाओं को शामिल किया गया है, जिन रचनाओं में लोकल टच है।

कौन-कौन सी रचनाएं हटीं ?
हार्डी की ‘वेन आई सेट ऑउट फॉर लियोनैस’, इलियॉट की ‘मैकेविटी: द मिस्ट्री कैट’ और ब्लैके की ‘द स्कूल बॉय’ की जगह ‘माय फर्स्ट विजिट टू द बैंक’, ‘द ब्रेव लेडी ऑफ राजस्थान’, ‘चित्तौर’ और ‘संगिता द ब्रेव गर्ल’ को शामिल किया गया है। बदले गए पाठ्यक्रम की पुस्तकें अजमेर, उदयपुर, दौसा, भरतपुर और जयपुर के स्टेट टेक्स्ट बुक डिपो में आ गई हैं।

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ऐसा फैसला क्यों ?
पाठ्यक्रम बदलने वाली कमेटी ने यह पाठ्यक्रम सरकार के उस आदेश का पालन करते हुए बदला है, जिसमें कहा गया है कि देश और राज्य से जुड़ी गर्व वाली रचनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद की ‘द सॉन्ग ऑफ द फ्री’ और रवींद्र नाथ टैगौर की ‘वेहर द माइंड इज विदआउट फियर’ को भी पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है।

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पहले हटाए उर्दू लेखक

इससे पहले आठवीं की हिंदी की पुस्तक से उर्दू लेखकों की रचनाओं को हटाया गया था। उर्दू लेखिका इस्मत चुगतई की कहानी ‘कामचोर’, हरि शंकर परसाई की ‘बस की यात्रा’ और वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ की ‘जहां पहिया है’ को हटा दिया गया था। इस पर कमेटी के एक सदस्य ने नाम ना शेयर करने की शर्त एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि हिंदी की पुस्तक में इन उर्दू लेखकों की रचनाओं में उर्दू के शब्दों की भरमार थी, जिन्हें समझने में छात्रों को दिक्कत होती थी। साथ ही उसने बताया कि उन्हें आदेश मिला था कि एक विशेष विश्वास के आसपास घूमने वाली रचनाओं को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए।

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छात्रों को कमजोर बनाता फैसला?
सरकार का यह फैसला प्रदेश के छात्रों को अन्य राज्यों के छात्रों की तुलना में कमजोर बनाता साबित हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्कूली पाठ्यक्रम को एक क्षेत्र तक ही सीमित किया जाएगा तो समझ लीजिए कि हम दूसरे राज्यों से एक अलग रास्ते पर चल पड़े हैं। इससे हमारे प्रदेश के छात्र राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अन्य राज्यों के छात्रों से पिछड़ जाएंगे।

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