इन आधा दर्जन याचिकाओं में से दो सप्लीमेंट्री वाद सूची में लगी और बाकी चार पर मुख्य वाद सूची में सुनवाई हुई। इन याचिकाओं पर न्यायाधीश अजय रस्तोगी व न्यायाधीश दीपक माहेश्वरी की बेंच सुनवाई हुई कुछ याचिकाओं पर बहस के लिए केन्द्र सरकार के पूर्व अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल विवेक तन्खा पहुंचे।
सदन से लेकर सड़क तक हुआ विरोध
लोकसेवकों को इस संरक्षण के लिए जारी अध्यादेश व विधेयक Criminal Laws (Rajasthan Amendment) Ordinance, 2017 को लेकर विधानसभा सत्र के पहले दो दिन सदन में भारी विरोध हुआ। विधानसभा के बाहर भी पत्रकारों, वकीलों और सामाजिक संगठनों सहित विभिन्न वर्गों की ओर से विरोध जताया गया।
लोकसेवकों को इस संरक्षण के लिए जारी अध्यादेश व विधेयक Criminal Laws (Rajasthan Amendment) Ordinance, 2017 को लेकर विधानसभा सत्र के पहले दो दिन सदन में भारी विरोध हुआ। विधानसभा के बाहर भी पत्रकारों, वकीलों और सामाजिक संगठनों सहित विभिन्न वर्गों की ओर से विरोध जताया गया।
प्रवर समिति को भेजा विधेयक
राजस्थान पत्रिका की मुहिम, सदन के बाहर और भीतर विरोध के कारण सरकार को विधेयक प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव पेश करना पड़ा। इसके बाद विधानसभा ने विधेयक प्रवर समिति को भेज दिया।
राजस्थान पत्रिका की मुहिम, सदन के बाहर और भीतर विरोध के कारण सरकार को विधेयक प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव पेश करना पड़ा। इसके बाद विधानसभा ने विधेयक प्रवर समिति को भेज दिया।
यह कहा गया याचिकाओं में
लोगों का न्यायिक उपचार का संवैधानिक अधिकार प्रभावित होगा
– संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14,19 व 21 के विपरीत है
– लोकसेवक के नाम पर पंच-सरपंच, एमएलए-एमपी को भी संरक्षण मिलेगा
– मजिस्ट्रेट के अधिकारों में कटौती संविधान के मूल ढांचे से छेडछाड़ होगी
– पुलिस को बिना मंजूरी मामला दर्ज करने का अधिकार है, लेकिन मजिस्ट्रेट को नहीं।
– दुष्कर्म पीडि़ता की पहचान छिपाने के पीछे सामाजिक कारण हैं, लेकिन अधिकारियों को संरक्षण जानने के अधिकार के विपरीत है।
– सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधियों की सम्पत्ति सार्वजनिक करने का आदेश दे रखा है, इसलिए भी संरक्षण गलत है
– सरकार 73 प्रतिशत शिकायत झूठी बता रही है, लेकिन यह नहीं बताया कि कितनी एफआर नामंजूर होती हैं
– सरकार 2015 में तंग करने वाली मुकदमेबाजी रोकने का कानून लाई, लेकिन अब तक एक भी व्यक्ति को चिन्हित नहीं किया है
– संशोधन के जरिए कोर्ट का जांच पर निगरानी का अधिकार समाप्त किया जा रहा है
– राजनेता और अधिकारियों की मिलीभगत से एेसा किया जा रहा है
लोगों का न्यायिक उपचार का संवैधानिक अधिकार प्रभावित होगा
– संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14,19 व 21 के विपरीत है
– लोकसेवक के नाम पर पंच-सरपंच, एमएलए-एमपी को भी संरक्षण मिलेगा
– मजिस्ट्रेट के अधिकारों में कटौती संविधान के मूल ढांचे से छेडछाड़ होगी
– पुलिस को बिना मंजूरी मामला दर्ज करने का अधिकार है, लेकिन मजिस्ट्रेट को नहीं।
– दुष्कर्म पीडि़ता की पहचान छिपाने के पीछे सामाजिक कारण हैं, लेकिन अधिकारियों को संरक्षण जानने के अधिकार के विपरीत है।
– सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधियों की सम्पत्ति सार्वजनिक करने का आदेश दे रखा है, इसलिए भी संरक्षण गलत है
– सरकार 73 प्रतिशत शिकायत झूठी बता रही है, लेकिन यह नहीं बताया कि कितनी एफआर नामंजूर होती हैं
– सरकार 2015 में तंग करने वाली मुकदमेबाजी रोकने का कानून लाई, लेकिन अब तक एक भी व्यक्ति को चिन्हित नहीं किया है
– संशोधन के जरिए कोर्ट का जांच पर निगरानी का अधिकार समाप्त किया जा रहा है
– राजनेता और अधिकारियों की मिलीभगत से एेसा किया जा रहा है