यह भी पढ़े : कोलकाता की लड़की से जयपुर में चलती कार में गैंग रेप, वीडियो में बताई पीड़िता ने आपबीती न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व न्यायाधीश गोवर्धन बाढदार की खण्डपीठ ने हबीब अहमद खान की याचिका पर यह आदेश दिया है। प्रार्थीपक्ष की ओर से कहा गया कि खान 23 साल से जेल में है और नियमित पैरोल के लिए पहली बार प्रार्थना पत्र पेश किया। केन्द्र सरकार ने 10 मई 2018 को उसके पैरोल के प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया। जबकि प्रार्थी के साथी अशफाक को सुप्रीम कोर्ट ने 14 मई 2018 को 21 दिन की पैरोल मंजूर की है। केन्द्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल आर डी रस्तोगी ने कहा कि याचिकाकर्ता टाडा में बंद है और उसने रेलवे अधिनियम, विस्फोटक अधिनियम व सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने से सम्बन्धित कानूनों के तहत भी अपराध किया। इस कारण उसे पैरोल का लाभ नहीं दिया जा सकता।
यह भी पढ़े : गौ तस्करी के विरोध में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल का राज्य भर में प्रदर्शन देनी होगी हर तीसरे दिन हाजिरी कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि प्रार्थी ने 23 साल में पैरोल का लाभ नहीं लिया और उसकी उम्र भी 92 साल है। प्रकरण में हबीब के साथी रहे अशफाक को पैरोल मिल चुकी है। कोर्ट ने इन तथ्यों का हवाला देकर केन्द्र सरकार के पैरोल देने से इनकार करने का प्रार्थना पत्र रद्द कर दिया। साथ ही, 20 दिन की पैरोल मंजूर करते हुए याचिकाकर्ता से एक लाख रुपए का निजी मुचलका व पचास पचास हजार रुपए के दो जमानती मुचलके पेश करने को कहा है। साथ ही, हर तीसरे दिन पुलिस के पास हाजिरी देने की शर्त भी लगाई है।