किसी अभिभावक या स्कूल को तय फीस में आपत्ति हो तो डिवीजनल फीस कमेटी के समक्ष दर्ज करा सकता है। मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहान्ति और न्यायाधीश सतीशकुमार शर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार सहित अन्य पक्षों की अपीलों पर शुक्रवार को फैसला सुनाया। खंडपीठ ने माना कि कोरोना में राज्य सरकार ने अपनी शक्तियों का सही उपयोग किया है। स्कूलों-अभिभावकों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है। ऐसे में कोर्ट इस नीतिगत फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है।
हाईकोर्ट ने यह कहा
1 . प्राथमिक और सैकंडरी शिक्षा विभाग से सम्बद्ध सभी स्कूलों को सरकार की 28 अक्टूबर की सिफारिशों के आधार पर फीस लेनी होगी।
2. जिन स्कूलों ने इस सत्र की फीस तय करने के लिए आवश्यक संस्था नहीं बनाई, वे फीस रेगुलेशन एक्ट 2016 के तहत 15 दिन में यह संस्था बना लें।
3. यह तय फीस केवल कोविड की वजह से बंद समय के लिए होगी। स्कूल खुलने के बाद राजस्थान स्कूल फीस रेगूलेशन एक्ट 2016 के तहत फीस तय की जा सकेगी। स्कूलों को स्टाफ की संख्या, वेतन सहित अन्य जानकारियां नोटिस बोर्ड और बेवसाइट पर सार्वजनिक करनी होगी।
4. विवाद से बचने के लिए स्कूल फीस की रसीद में नियमानुसार अलग-अलग मद दर्शाना जरूरी होगा।
5. अभिभावक या स्कूल को तय फीस में आपत्ति हो तो डिवीजनल फीस कमेटी के समक्ष दर्ज करा सकेंगे।
6 . तय फीस सरकार की 28 अक्टूबर की सिफारिशों के तहत लेनी होगी लेकिन इन सिफारिशों के साथ स्कूल और अभिभावक मिलकर फीस कम-ज्यादा कर सकते हैं।
इनका कहना है
राज्य सरकार ने अभिभावक और स्कूल, दोनों को ध्यान में रखकर फैसला किया था। अब हाईकोर्ट ने भी इसी के अनुसार फैसला दिया है। स्कूल बच्चों को जितना पढ़ा रहे हैं, उतनी ही फीस ले सकते हैं।
– राजेश महर्षि, अतिरिक्त महाधिवक्ता
फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। स्कूल के अधिकार प्रभावित होते दिखे तो आगे कोर्ट में जा सकते हैं।
– प्रतीक कासलीवाल, निजी स्कूल के अधिवक्ता