राजस्थान के सूचना आयुक्त आशुतोष शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि भारत की महान संसद ने आरटीआई के रूप में आम नागरिक के हाथ में एक पवित्र अस्त्र दिया है जिससे शासन-प्रशासन में पारदर्शिता व जवाबदेही की भावना बढ़ी है लेकिन शासन-प्रशासन के कामकाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए ऐसे पवित्र अस्त्र के दुरूपयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती।
ऐसा कृत्य सूचना का अधिकार अधिनियम के दुरूपयोग की श्रेणी में आता है और सरकारी कार्यालय में कामकाज प्रभावित होने से अन्ततः आम जनता ही पीड़ित होती है। आवेदक एक, लगा दिए 1502 आरटीआई आवेदन, अधिकारी दबाव में
दरअसल, गोपीराम अग्रवाल ने स्वायत्त शासन निदेशालय एवं मुख्य नगर नियोजक के परिपत्रों की पालना के बारे में बांसवाड़ा नगर परिषद से सूचनाएं चाहीं थीं। नगर परिषद की ओर से आयोग के समक्ष कहा गया कि अग्रवाल ने परिषद में 1502 आरटीआई आवेदन दाखिल कर रखे हैं जिससे अधिकारी दबाव में हैं और नगर परिषद का सामान्य कामकाज प्रभावित हो रहा है।
दरअसल, गोपीराम अग्रवाल ने स्वायत्त शासन निदेशालय एवं मुख्य नगर नियोजक के परिपत्रों की पालना के बारे में बांसवाड़ा नगर परिषद से सूचनाएं चाहीं थीं। नगर परिषद की ओर से आयोग के समक्ष कहा गया कि अग्रवाल ने परिषद में 1502 आरटीआई आवेदन दाखिल कर रखे हैं जिससे अधिकारी दबाव में हैं और नगर परिषद का सामान्य कामकाज प्रभावित हो रहा है।
अपीलार्थी सिर्फ तारीख बदल कर थोड़े थोड़े दिन के अंतराल में हूबहू आवेदन पेश करता है फिर भी अपीलार्थी को सूचनाएं दी जा रही हैं लेकिन आवेदक को आरटीआई एक्ट के दुरूपयोग से रोका जाए।
आयोग बोला – समान सूचना मांगना खारिज करने योग्य
सूचना आयुक्त आशुतोष शर्मा ने गत दिनों गोपीराम अग्रवाल की 8 द्वितीय अपीलें खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि पूर्व में दाखिल सूचना आवेदन की हूबहू प्रति में सिर्फ तारीख का बदल कर समान सूचना के लिए एकके बाद एक, आठ सूचना आवेदन दाखिल करना न केवल अनुचित बल्कि आपत्तिजनक ही कहा जा सकता है।
सूचना आयुक्त आशुतोष शर्मा ने गत दिनों गोपीराम अग्रवाल की 8 द्वितीय अपीलें खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि पूर्व में दाखिल सूचना आवेदन की हूबहू प्रति में सिर्फ तारीख का बदल कर समान सूचना के लिए एकके बाद एक, आठ सूचना आवेदन दाखिल करना न केवल अनुचित बल्कि आपत्तिजनक ही कहा जा सकता है।
एक ही सूचना के लिए बार बार आवेदन लगाने पर उस सूचना को तलाश करने, दस्तावेजों की गणना कर प्रतिलिपि शुल्क गणना करने आदि पूरी प्रक्रिया ही अनावश्यक रूप से लोक प्राधिकरण के साधन-संसाधनों और रोजमर्रा के कार्यां को अननुपातिक रूप से विचलित करती है।
मेरे विचार से सूचना काअधिकार अधिनियम की प्रस्तावना एवं उद्देश्य के आलोक में शासन-प्रशासन के दक्ष संचालन को ध्यान में रखते हुए एक ही सूचना को बार-बार दिया जाना आरटीआई एक्ट की धारा 7 9 के तहत भी अपेक्षित नहीं है और खारिज करने योग्य हैं।