लवणता प्रभावित धौलपुर जिले के 106, भरतपुर के 945 गांवों और पांच कस्बों के लिए 1050 करोड़ की चंबल-भरतपुर-धौलपुर योजना पर काम 1999 से शुरू हुआ था। इसके 7 में से सिर्फ एक पैकेज पूर्ण हुआ है। अब तक 378 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। योजना 1999 से चल रही है।
नागौर लिफ्ट परियोजना 494 गांवों के लिए 1194 करोड़ रुपए लागत से 2006 में शुरू हुई। यह अब भी अधूरी है। ठेकेदारों पर 26 करोड़ का जुर्माना लगाया लेकिन वसूला नहीं गया।
कोटा जिले के लाडपुरा तहसील की 77 बस्तियों की बोरबास पदमपुरा नयागांव कसार योजना का काम वन विभाग की आवश्यक मंजूरी के बिना होने के कारण 10 साल बाद भी अधूरी है।
– 26 हजार करोड़ रुपए लागत की 54 बड़ी पेयजल योजनाओं में से 20,695 करोड़ की 37 योजनाओं की गति अत्यंत धीमी
– 14491 करोड़ रुपए लागत की ग्रामीण पेयजल योजनाओं में से 7,491 करोड़ की 119 योजनााएं भी तय समय से काफी पीछे
– पाइप युक्त जल योजना
– नलकूप
– हैंडपंप
– डिग्गी (लघु तालाब) विलम्ब के कारण बड़ी परियोजनाएं
– 05 परियोजनाएं संबंधित विभागों से आवश्यक मंजूरी लेने में देर
– 13 परियोजनाएं जमीन पर कब्जा लेने में देर
– 06 परियोजनाएं आवश्यक मंजूरी और जमीन पर कब्जा लेने में देर
– 13 परियोजनाएं ठेकेदारों ने गति धीमी रखी, बजट की कमी
– 21 मंजूरी जारी करने में देर की
– 15 स्रोत संबंधी देर
– 08 मंजूरी में देर
– 03 बजट की कमी
– 24 अन्य समस्याओं के कारण
कैग ने वर्षों से चल रही योजनाओं पर ध्यान नहीं देने के लिए सरकारी अफसरों के रवैये पर आपत्ति जताई है। साथ ही जलदाय विभाग को दूसरे मंत्रालयों, विभागों और अधिकारियों से समन्वय स्थापित करने की सलाह दी है।