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अनपढ़ होकर भी राजस्थान की इस महिला ने देश को किया गोरान्वित, अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में 3 बार ले चुकी है हिस्सा

locationजयपुरPublished: Oct 05, 2019 01:53:31 pm

Submitted by:

dinesh

Rajasthan News: अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा है छोटा सा गांव हीरावास। यहां भीलों का झूंपा पांचवी स्कूल में पोषाहार पकाती है डाइली बाई राइका ( Dailibai Raika )। महज 13 सौ रुपए का मासिक मानदेय हासिल कर रही डाइली पढ़ी-लिखी बिलकुल नहीं है…

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राजेन्द्रसिंह देणोक/पाली। अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा है छोटा सा गांव हीरावास। यहां भीलों का झूंपा पांचवी स्कूल में पोषाहार पकाती है डाइली बाई राइका ( Dailibai Raika )। महज 13 सौ रुपए का मासिक मानदेय हासिल कर रही डाइली पढ़ी-लिखी बिलकुल नहीं है। लेकिन उसका अनुभव डिग्री-डिप्लोमा से कहीं ज्यादा है। वह मूक मवेशियों के लिए विश्व मंच पर आवाज बनकर उभरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ खाद्य एवं कृषि (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ यूनाइटेड नेशन) ( Food and Agriculture Organization of United Nations ) संगठन की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेस ( International Confarence ) में पशुपालकों के अधिकारों की पैरवी कर चुकी है।
डाइली का परिवार पशुपालक है। करीब ढाई दशक पूर्व वह जर्मनी की वेटनरी डॉ. इल्से कोहलर के सम्पर्क में आई। तभी से पशुपालकों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। 2007 में उसने स्वीजरलैंड में यूएनओ की कांफ्रेस में हिस्सा लिया और भारतीय पशुपालकों के अधिकारों की मांग उठाई। इसी साल, स्पेन और जर्मनी की यात्रा में भी पशुपालकों के अधिकारों की पुरजोर पैरवी की।
2009 में कनाडा में कनवेंशन ऑफ बायो डायवर्सिटी में कम्प्यूनिटी बायो कल्चर प्रोटोकॉल (राइका समाज का घोषणा पत्र ) का प्रतिनिधित्व किया। वह कई अन्य मंचों पर भी पशुपालकों के अंतरराष्ट्रीय अधिकारों पर बात कर चुकी है। वह टूटी-फूटी हिंदी में बात कर लेती है, लेकिन अंतररष्ट्रीय मंचों पर दुभाषिए के जरिए अपनी बात अंतरराष्ट्रीय पटल पर रखी।
पशुपालकों के लिए चला रही मुहिम
55 साल की डाइली के पति का कुछ साल पहले निधन हो गया था। तीन बेटे और एक बेटी को पालपोष बड़ा किया। वह खुद पशुपालक है। दो दशक से स्थानीय स्तर पर पशुपालकों को अधिकार दिलाने की वकालात कर रही है। लोकहित पशुपालक संस्थान के साथ मिलकर चारागाह विकसित करने, पशुपालकों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने, जंगलों में पशुधन चराने के लिए उपयुक्त माहौल बनाने और पशुपालकों का जीवन स्तर सुधारने की मुहिम चला रही है।
सरकार से खफा
मेड्रिड शहर में जर्मन सरकार हर साल माइग्रेशन रूट पर पशुपालकों के लिए बड़ा कार्यक्रम आयोजित करती है। 2007 में भारत की ओर से डायली ने प्रतिनिधित्व किया था। डाइली का कहना है कि जर्मनी समेत कई देशों में पशुपालकों को सरकारें बहुत सम्मान देती है और उनके अधिकारों का संरक्षण करती है। पशुपालकों को आर्थिक सहयोग भी दिया जाता है। कई देशों में जानवरों के लिए सेंचूरी बनी हुई है। चारागाह का भी बड़े पैमाने विकसित किए जाते हैं।
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