scriptश्राप से कोटकास्ता का किला हुआ वीरान: हॉलीवुड फिल्म ‘द वारियर’ की शूटिंग हो चुकी है यहां, नाथ सम्प्रदाय की तपोस्थली भी | Rajasthan's Kotkasta fort ruined, 'The Warrior' was shot here | Patrika News

श्राप से कोटकास्ता का किला हुआ वीरान: हॉलीवुड फिल्म ‘द वारियर’ की शूटिंग हो चुकी है यहां, नाथ सम्प्रदाय की तपोस्थली भी

locationजयपुरPublished: Mar 13, 2023 11:46:46 am

Submitted by:

Amit Purohit

ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि वाला कोटकास्ता का दुर्ग नजरअंदाजी की मार झेल रहा है और देखरेख में अभाव में खंडहर में तब्दील हो रहा है।

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राजूसिंह राव/ रामसीन(जालौर). वह दिन दूर नहीं, जब देखरेख के अभाव में कोटकास्ता दुर्ग के अवशेष ही दिखाई दें। जबकि यह दुर्ग ऐतिहासिक होने के साथ साथ धार्मिक पृष्ठभूमि में भी महत्वपूर्ण है। यह स्थान गुरु जलंधनाथ व गोरखनाथ की तपोस्थली है। जालोर जिले के उपखण्ड भीनमाल से 20 किलोमीटर दूर स्थित बसे कोटकास्ता गांव की पहाड़ी पर स्थित किले की बनावट इतनी आकर्षक है कि हॉलीवुड फिल्म द वॉरियर का फिल्मांकन भी इसी किले में किया गया।
नाथों को मिली थी जागीर:
करीब 200 साल पहले जोधपुर के तत्कालीन नरेश मानसिंह को देश निकाला दे दिया था और जोधपुर के राजगद्दी पर भीमसिंह बैठ गए थे।उन दिनों महाराज मानसिंह स्वर्णगिरीदुर्ग की पहाडिय़ों में शरण लिए हुए थे। यहां एक साधु ने चरवाहे को बताया कि जोधपुर महाराज मानसिंह शरण लिए हुए है। उन्हें बताना है की सूर्योदय तक इस पहाड़ी को न छोड़े। सूर्योदय होते ही उन्हें जोधपुर राजगद्दी दोबारा मिल जाएगी। मानसिंह को विश्वास नहीं हो तो उन्हें कहना जिस जगह वे खड़े है वहां उत्तर दिशा में साठ कदम पर जमीन खोदना वहां उन्हें जलन्धरनाथ महादेव के पदचिह्न मिलेंगे। मानसिंह ने ऐसा ही किया और सूर्योदय होने पर जोधपुर के तत्कालीन शासक भीमसिंह के पीठ में अचानक बीमारी उठी ओर उनकी मृत्यु हो गई। मानसिंह को जोधपुर की राजगद्दी मिल गई। जोधपुर की राजगद्दी मिलने पर मानसिंह ने नाथों को अपना गुरु माना और कोटकास्ता सहित 9 गांव जागीरी में दिए। कोटकास्ता को सोनानवेसी जागीरदार की पदवी मिली।
पहले कोट व कास्तान नाम के दो गांव थे:
कोटकास्तान गांव पहले कोट व कास्तान नाम के दो गांव थे जो अब एकाकार होकर कोटकास्तान नाम से जाने जाते है। ईस्वी 1804 में राजा मानसिंह जोधपुर राज्य की गद्दी पर बैठे तथा आयस देवनाथ को उन्होंने अपना गुरु बनाया। मानसिंह ने नाथों को अनेकों जागीरें भी प्रदान की। योगी भीमनाथ को भी कास्तान के पास जागीरी दी गई। भीमनाथ आईजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे तथा उन्होंने कास्ता गांव के पास ही पहाड़ी पर एक लघु दुर्ग का निर्माण करवाया तथा उसके चारों ओर एक मजबूत परकोटा बनवाया। इस परकोटे के निर्माण में पहाड़ी को भी दीवार की भांति प्रयुक्त जारी किया गया।दुर्ग के परकोटे के बहार एक ओर विशाल दरवाजे एवं दो छोटे छोटे दरवाजे बनवाए गए। इसी परकोटे के भीतर नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर तथा जलन्धरनाथजी की समाधि मंदिर भी है। इस प्रकार कास्ता गांव की बगल में कोट नाम से दूसरा गांव बस गया। परकोटे के भीतर का गांव कोट बहार का गांव कास्ता तथा सम्मिलित रूप से कोटकास्तान कहलाने लगा। लगभग 200 वर्ष पुराने नाथों के इस दुर्ग में तीन मंजिला राजमहल, प्राचीर, बुर्ज, विशाल प्रवेश द्वार तथा अन्य निर्माण अब भी देखे जा सकते है। भीतरी भाग मेंप्रासाद के दोनों ओर ऊंचे व बड़े चबूतरे बने हुए है। प्रसाद के मुख्य द्वार पर काठ का एक जीर्णशीर्ण किन्तु विशाल दरवाजा है ,जो भीतर से बन्द है। चूंकी यह प्रासाद तीन मंजिला है। जिसके दालान, चौबारे, कक्ष, गवाक्ष, झरोखे बनते है।
श्राप से किला हुआ वीरान:
किवदंती है कि कोटकास्तान गांव के जागीरदार बाद में जनता पर अत्याचार करने लगे। एक महिला ने अत्याचार से परेशान होकर किले से कूदकर आत्महत्या कर ली। उसने तत्कालीन जागीरदार को श्राप दिया की तेरा वंश आगे नहीं बढ़ेगा। यही वजह है कि स्थान वंशहीन हो गया।
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