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Sachin Pilot कैंप की बगावत से तीसरा मोर्चा गठन की सुगबुगाहट, पर प्रदेश में सही नहीं रहा है इस विकल्प का इतिहास

locationजयपुरPublished: Jul 14, 2020 09:34:01 am

Submitted by:

firoz shaifi

राजस्थान में आसान नहीं तीसरे मोर्चे का विकल्प, पायलट कैंप की बगावत से तीसरा मोर्चा गठन की सुगबुगाहट, पहले भी तीसरे मोर्चे के हुए प्रयास, नहीं मिली सफलता

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जयपुर।

गहलोत सरकार पर आए सियासी संकट के बीच पायलट खेमे को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। राजस्थान की सियासत में चर्चा है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक प्रदेश में तीसरे मोर्चे के विकल्प को तैयार करेंगे। पायलट खेमे के कई विधायकों ने इसके संकेत भी दिए हैं। ऐसा पहली बार नहीं है कि जब राजस्थान में तीसरे मोर्चे के विकल्प की शुरुआत हुई है इससे पहले भी कई मोर्चे बने और उन्हें आंशिक सफलता भी मिली लेकिन मजबूत विकल्प नहीं बन पाए।

जनता दल
राजस्थान में दरअसल तीसरे मोर्चे की शुरुआत जनता दल ने की थी, जब भैरो सिंह शेखावत ने जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई लेकिन बाद में जनता दल का भाजपा में विलय करा लिया राजेंद्र राठौड़, डॉ चंद्रभान, माहिर आजाद, मोहन प्रकाश जैसे दिग्गज जनता दल से ही निकले हैं।

सामाजिक न्याय मंच
इसके बाद देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच बनाकर तीसरा मोर्चा खड़ा करने का विकल्प तैयार किया। विधानसभा चुनाव भी हुए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।



राजपा
वहीं भाजपा से बगावत कर राजपा दल बनाने वाले किरोड़ी लाल मीणा ने भी पार्टी बनाई, विधानसभा का चुनाव भी लड़ा और गहलोत सरकार के दूसरे कार्यकाल में सरकार का हिस्सा बने। इसके बाद 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भी राज्यपाल ने अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन महज 4 सीट ही जीत पाए उसके बाद किरोड़ी लाल मीणा दोबारा भाजपा में जाकर राज्य सभा मेंबर बन गए।

दीन दयाल वाहिनी
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाने वाले दिग्गज ब्राह्मण नेता घनश्याम तिवाड़ी ने भी दीनदयाल वाहिनी का गठन किया। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर प्रत्याशी उतारे लेकिन स्वयं भी सांगानेर से चुनाव हार गए उसके बाद तिवाड़ी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत में आस्था जताते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए।

रालोपा को आंशिक सफलता
इधर भाजपा से नाता तोड़कर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाने वाले हनुमान बेनीवाल ने भी 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे लेकिन महेश 3 सीटों के साथ आंशिक सफलता ही हासिल कर पाए ऐसे में चर्चा यही है कि राजस्थान में भाजपा-कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे का विस्तार आसान काम नहीं है।
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