कांग्रेस के हरावल दस्तों में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई शामिल है। चुनाव के वक्त इनके कार्यकर्ता पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार करने साथ ही प्रचार व चुनावी बूथ संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जब कांग्रेस विपक्ष में होती है तब हरावल दस्ते के कार्यकर्ता सरकार के गलत निर्णयों व नीतियों खिलाफ धरने, प्रदर्शन करके कांग्रेस की चुनावी जमीन तैयार करते हैं। ऐसे ही धरने—प्रदर्शनों के दौरान उन पर मुकदमें दर्ज होते हैं। पिछली वसुंधरा सरकार में भी यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई कार्यकर्ताओं पर मुकदमें दर्ज किए गए थे। अशोक गहलोत की सरकार बनने के बाद से हरावल दस्ते के नेता ऐसे मुकदमें वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इस संबंद्ध में संगठन और सरकार से कई बार मांग की, लेकिन मुकदमें वापस नहीं लिए।
क्यूं भड़की विरोध की चिंगारी
कार्यकर्ताओं सपना होता है वह चुनाव लड़कर जनप्रतिनिधि बने। प्रदेश निकाय चुनाव होने है। सभी निकाय प्रमुखों के आरक्षण की लॉटरी निकल चुकी है। ऐसे में जिन कार्यकर्ताओं पर मुकदमें दर्ज है, वे चुनाव नहीं लड़ सकते। अपना भविष्य चौपट होता देख, उनका विरोध और मुखर होता जा रहा है। शायद केन्द्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के चलते सरकार मुकदमे वापस ले लें। इसी आस में उन्होंने दिल्ली में विरोध शुरू कर दिया है।
कार्यकर्ताओं सपना होता है वह चुनाव लड़कर जनप्रतिनिधि बने। प्रदेश निकाय चुनाव होने है। सभी निकाय प्रमुखों के आरक्षण की लॉटरी निकल चुकी है। ऐसे में जिन कार्यकर्ताओं पर मुकदमें दर्ज है, वे चुनाव नहीं लड़ सकते। अपना भविष्य चौपट होता देख, उनका विरोध और मुखर होता जा रहा है। शायद केन्द्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के चलते सरकार मुकदमे वापस ले लें। इसी आस में उन्होंने दिल्ली में विरोध शुरू कर दिया है।
10 महीने से परेशान है कार्यकर्ता—भगासरा
राजस्थान यूथ कांग्रेस उपाध्यक्ष सुमित भगासरा ने दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे से मुलाकात के बाद कहा कि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार इस संबंध में निर्णय ले चुकी है, लेकिन राजस्थान सरकार ने ऐसा नहीं किया है। कार्यकर्ता 10 महीने से मुकदमें वापस लेने की मांग कर रहे हैं। मुकदमों के कारण नौकरी के साथ ही वे निकाय चुनाव लड़ने से भी वंचित रह सकते हैं। उनका कैरियर चौपट हो रहा है। इस मामले में निसंदेह देरी हो रही है।
राजस्थान यूथ कांग्रेस उपाध्यक्ष सुमित भगासरा ने दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे से मुलाकात के बाद कहा कि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार इस संबंध में निर्णय ले चुकी है, लेकिन राजस्थान सरकार ने ऐसा नहीं किया है। कार्यकर्ता 10 महीने से मुकदमें वापस लेने की मांग कर रहे हैं। मुकदमों के कारण नौकरी के साथ ही वे निकाय चुनाव लड़ने से भी वंचित रह सकते हैं। उनका कैरियर चौपट हो रहा है। इस मामले में निसंदेह देरी हो रही है।