Kota : रोज बिकती हैं 4 लाख से ज्यादा कचौरियां
बात करते हैं कोटा की.. चम्बल नदी के तट पर बसे हुए कोटा शहर शिक्षा नगरी के नाम से भी जाना जाता है। जहां एक तरफ पूरा देश भले ही पिज्जा और बर्गर का दीवाना हो, लेकिन यहां के लोगों की जुबान पर कोटा कचौरी ( Kota Kachori ) का जायका ही छाया हुआ है। एक अनुमान है कि कोटा में हर रोज तकरीबन चार लाख कचौरी बिकती है। शहर में 350 से ज्यादा दुकानों और करीब इतने ही ठेलों पर हर रोज चार लाख से ज्यादा कचौरियां बिकती हैं। जिन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं। आलम यह है कि मेट्रो सिटीज से आने वाले बच्चे भी कोटा की कचौरी के दीवाने हो गए। शायद ही कोटा की कोई ऐसी गली होगी जिसमें कचौरी की दुकान ना हो। जहां सुबह आठ बजे से लेकर रात को आठ बजे तक कचौरी खाने वालों की कतार ना लगी हो।Beawar : 10 हजार से ज्यादा कचौड़ी-समोसे रोज़ खाते हैं लोग
अजमेर जिले के ब्यावर की बात करें तो यहां के नाश्ते की खास बात ये है कि यहां मेवाड़ और मारवाड़ दोनों का प्रभाव है। इसलिए यहां नाश्ते में कचौरी, समोसे, पकौड़ी, मिर्ची बड़े सभी तरह के व्यंजन मिलते हैं। नाश्ते के शौकीन लोगों का ये हाल है कि सुबह 7 बजे से दुकानों पर कचौरी-समोसे की बिक्री शुरू हो जाती है। ब्यावरवासी करीब 10 हजार से ज्यादा कचौड़ी, समोसे प्रतिदिन खा जाते हैं। यहां की कचौरी के साथ कढ़ी और चटनी भी परोसी जाती है। बारिश के समय तो यहां और ज्यादा बिक्री शुरू हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक ब्यावर में करीब 4 लाख रुपए से ज्यादा के कचौरी-समोसे की बिक्री तय है।Alwar : 10 लाख रुपए की कचौरियां हो जाती है चट
अलवर शहर में भी कचौरी की दीवानगी तगड़ी है। यहां के लोग एक दिन में 10 लाख रुपए की कचौरियां चट कर जाते हैं। अलवर में कचौरियां का ही कारोबार ऐसा है जिसमें पूरा दिन नहीं बल्कि कुछ ही घंटों का काम होता है। शहर के कचौरी विक्रेताओं के अनुसार एक ही दिन में करीब 1 लाख से ज्यादा की कचौरियां बिक जाती है। इसमें एक कचौरी की कीमत लगभग दस रुपए से कम नहीं है। इससे अनुमान लगता है कि अलवर वासी एक ही दिन में करीब 10 लाख रुपए की कचौरियां खा जाते हैं।विदेशों तक भी महकती है खुशबू
राजस्थान में चाहे कोटा की कचौरी हो, भरतपुर की या फिर जोधपुर की कचौरी हर जगह की कचौरी का स्वाद कुछ खास होता है। साथ ही हर जगह इसकी डिमांड भी अलग है। आम लोगों के साथ-साथ पर्यटकों में भी यहां का नाश्ता फेमस है। इतना ही नहीं यहां के व्यक्ति विदेश में जाकर नौकरी करते हैं, लेकिन जब आते हैं तो 200 से 300 कचौरी एक साथ पैक कराकर अपने साथ ले जाते हैं। कचौरियों की प्रसिद्धि विदेशों में भी है।