राठौड़ ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रदेशवासियों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं देने के साथ ही अपने ‘गुरु’ स्वर्गीय पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत को याद किया। इस दौरान उन्होंने शेखावत की ‘गुरु शिक्षा’ को याद करते हुए अपना अनुभव और एक वीडियो भी साझा किया।
राठौड़ ने लिखा, ‘राजनीति के अजातशत्रु, सरल-सौम्य व्यवहार व जिंदादिल व्यक्तितत्व के धनीं, बाबोसा हुक्म राजस्थान की धरा के वो वटवृक्ष थे जिनकी छांव में मेरे जैसे अनगिनत कार्यकर्ताओं ने राजनीति की बारीकियां सीखी थी। भैरोंसिंह जी का संबंध राजस्थान के नगर-नगर, डगर-डगर, गांव व ढाणी में लोगों से आत्मीयता वाला रहा है। भैरोंसिंह शेखावत चलते-फिरते वो विश्वविद्यालय थे, उनसे जितना सीखो उतना ही कम था। वे ऐसे शिल्पकार थे जो कार्यकर्ताओं को पहचानकर उन्हें गढ़ने, उनकी रूचि के अनुसार काम देने व कर्मठ कार्यकर्ता तैयार करना अच्छी तरह से जानते थे। मुझे आज भी वो क्षण याद है जब उनके मार्गदर्शन में मुझे जनसेवा करने का सौभाग्य मिला।’
उन्होंने लिखा, ‘मुझे व्यक्तिगत रूप से उनका स्नेह मिला, वह मेरे पथप्रदर्शक रहे। वे जब भी मिलते थे पिता की भांति स्नेह किया करते थे और निःस्वार्थ व समर्पण भाव से जनता की सेवा करने का पाठ पढ़ाया करते थे। उनके विरोधी तो थे, मगर शत्रु कोई नहीं था और मुझे अच्छी तरह याद है कि वो खुद भी कहते थे, “मैं दोस्त बनाता हूँ, दुश्मन नहीं”।’
‘आज शिक्षक दिवस के अवसर पर मेरे जीवन में एक गुरु की भांति मुझे आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करने वाले बाबोसा हुक्म के बारे में जितना लिखूं, जितना कहूं उतना ही कम है। मेरे हृदय पटल पर आज भी उनसे जुड़ी स्मृतियां अटल हैं। बाबोसा के आदर्श विचार एवं सिद्धांत मेरे जीवन की बहुमूल्य धरोहर हैं और मैं उनके बताए रास्ते पर ही आगे बढ़कर जनसेवा की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा हूं।’
नहीं भूलते ‘गुरु’ की भूमिका
उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में ‘गुरु’ शेखावत को याद करना कभी नहीं भूलते। हाल ही में शेखवात के जीवनकाल पर आयोजित हुए एक कार्यक्रम में राठौड़ ने गुरुजी को याद किया था। उस दौरान उन्होंने बताया था कि शेखावत जैसे वटवृक्ष की छाया में उन्हें वर्ष 1978-79 से लेकर 2003 तक छात्र नेता, युवा नेता, विधायक, मंत्री और सचेतक के रूप में काम करने का मौक़ा मिला। उनके मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला। राठौड़ ने भैरोंसिंह शेखावत को चकता-फिरता विश्वविद्यालय बताते हुए कहा था कि उनसे जितना सीखो उतना ही कम था।