scriptपशुओं के रंग में रंगने लगा नागौर का रामदेव पशु मेला | Ramdev cattle fair of Nagaur started coloring in the color of animals | Patrika News

पशुओं के रंग में रंगने लगा नागौर का रामदेव पशु मेला

locationजयपुरPublished: Jan 28, 2020 10:03:20 am

Submitted by:

HIMANSHU SHARMA

नागौरी बैल, भैंस,ऊंट और अश्व वंश की मेले में आवक

Marwar Horse Show will be started from February 1 in jodhpur

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जयपुर
नागौर में लगने वाले विश्वस्तरीय रामदेव पशु मेले का आगाज हो चुका हैं। हालांकि इस विश्वविख्यात पशु मेले का रंग फिका जरुर पड़ने लगा है लेकिन मेला पशुओं के रंग में रंगने लगा लगा हैं। यहां हजारों की संख्या में पशुपालकों ने पहुंचना शुरू कर दिया हैं। इस मेले की खासियत नागौरी बैल है जिन्हें बेचने सबसे ज्यादा पशुपालक यहां पहुंचते हैं। यहीं कारण है कि नागौरी बैल, भैंस,ऊंट और अश्व वंश की मेले में आवक होने लगी हैं। पशु मेले के पहले दिन करीब पांच सौ की संख्या में पशु पहुंचे थे। जिनकी संख्या अब एक हजार की ओर पहुंचने लगी हैं। सबसे ज्यादा करीब 300 नागौरी बैल और दौ सौ से ज्यादा ऊंट इस मेले में पहुंचने लगे हैं। वहीं भैंस और अश्व वंश की भी आवक होने लगी हैं। मेले में उतर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब सहित अन्य राज्यों से व्यापारी पशुओं की खरीदारी को लेकर पहुंचने शुरू हो गए हैं।
पशुओं की घटती संख्या चिंता का विषय
मेले में पशुओं की कम संख्या कम होना चिंता का विषय है। आयोजकों का मानना है कि मेले में बेहद ही कम पशुओं की आवक हुई है। हालांकि आगामी दिनों में यह संख्या बढ़ने की संभावना है। कभी नागौरी बैलों की धमक वाले इस मेले का रंग बदलने लगा है।विभिन्न क्षेत्रों से आए पशु पालक उम्मीद लेकर यहां पहुंचे हैं। गांव फरणोद से आए पशुपालक सुखराम की उम्र 70 बरस है और चलने में उन्हें काफी परेशानी है।सुखराम ने बताया कि पशु भी हमारे ही घर परिवार के सदस्य हैं। अपने घर के पशुओं को हम किसी भी सूरत में बेगाना नहीं समझते, बल्कि उन्हें भी अपने घर का हिस्सा ही मानते हैं। सुखराम कहते हैं कि पशुओं की मूक आंखें बहुत कुछ कह देती है। यह इशारे से ही अपनी भावनाओं को व्यक्त कर देते हैं, और यह दगाबाज नहीं होते। लेकिन इस मेले के लिए तैयार किए गए पशुओं की यहां पर कदर नहीं हैं। पहले काफी लोग इन्हें निहारने और खरीदने आते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हैं। वहीं तीन साल से कम उम्र के बछड़ों के परिवहन पर भी रोक हैं। अगर यह हट जाए तो फिर मेला गुलजार हो सकता है। मेले में पशुओं की कम संख्या कम होना चिंता का विषय हैं।
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