राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा
रणथम्भौर उद्यान को भारत सरकार ने 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभ्यारण्य के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में बाघों की घटती संख्या से चिंतित होकर सरकार ने इसे 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर अभ्यारण्य घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कोशिश शुरू की। इस प्रोजेक्ट से अभ्यारण्य और राज्य को लाभ मिला और रणथम्भौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया। इसके चलते 1974 में रणथम्भौर को राष्ट्रीय अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया। 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभ्यारण्यों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया। वर्ष 1984 में सवाई मानसिंह अभ्यारण्य और केवलादेव अभ्यारण्य की घोषणा भी की गई। बाद में इन दोनों को बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया।
यहां का मुख्य आकर्षण यहां की वाइल्ड लाइफ और खासकर टाइगर्स हैं। रणथम्भौर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स की फेवरिट जगह है और पूरी दुनिया से फोटोग्राफर्स यहां नियमित रूप से आते रहते हैं। यहां की सफारी 392 स्क्वेयर किमी में फैली हुई है और नेशनल पार्क के पास दो सैन्चुरी मानसिंह सैन्चुरी और कैला देवी सैन्चुरी हैं। सफारी से आप घने जंगलों की सैर का मजा ले सकते हैं।
रणथम्भौर उद्यान को भारत सरकार ने 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभ्यारण्य के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में बाघों की घटती संख्या से चिंतित होकर सरकार ने इसे 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर अभ्यारण्य घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कोशिश शुरू की। इस प्रोजेक्ट से अभ्यारण्य और राज्य को लाभ मिला और रणथम्भौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया। इसके चलते 1974 में रणथम्भौर को राष्ट्रीय अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया। 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभ्यारण्यों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया। वर्ष 1984 में सवाई मानसिंह अभ्यारण्य और केवलादेव अभ्यारण्य की घोषणा भी की गई। बाद में इन दोनों को बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया।
यहां का मुख्य आकर्षण यहां की वाइल्ड लाइफ और खासकर टाइगर्स हैं। रणथम्भौर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स की फेवरिट जगह है और पूरी दुनिया से फोटोग्राफर्स यहां नियमित रूप से आते रहते हैं। यहां की सफारी 392 स्क्वेयर किमी में फैली हुई है और नेशनल पार्क के पास दो सैन्चुरी मानसिंह सैन्चुरी और कैला देवी सैन्चुरी हैं। सफारी से आप घने जंगलों की सैर का मजा ले सकते हैं।