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जयपुर

चेतावनी : सरिस्का में बाघों की जिन्दगी पर सबसे बड़ा खतरा, टाइगर रिजर्व की सच्चाई उजागर

फिर खतरे में टाइगर ( Tiger ), वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंंडिया ( Wildlife Institute of India ) की रिपोर्ट में टाइगर रिजर्व ( Tiger Reserve ) की सच्चाई उजागर, सरिस्का ( Sirisca Tiger Reserve ) में नहीं दिख रहे भालू, चिंकारा जैसे वन्य जीव

जयपुरAug 10, 2019 / 05:10 pm

pushpendra shekhawat

चेतावनी : सरिस्का में बाघों की जिन्दगी पर सबसे बड़ा खतरा, टाइगर रिजर्व की सच्चाई उजागर

चेतावनी : सरिस्का में बाघों की जिन्दगी पर सबसे बड़ा खतरा, टाइगर रिजर्व की सच्चाई उजागर

शादाब अहमद / जयपुर। Rajasthan के रणथंभौर ( Ranthambore Tiger Reserve ) और सरिस्का टाइगर रिजर्व ( Sirisca Tiger Reserve ) में भले ही बाघों ( Tiger ) की संख्या बढऩे पर हम सभी खुशी मना रहे है। इसी बीच वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंंडिया ( Wildlife Institute of India ) ने चेतावनी दी है कि रणथंभौर में पर्यटन ( tourism ) से और सरिस्का में शिकार करने वाले जाति विशेष वर्ग के लोगों के रहने से बाघों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है। खासतौर पर सरिस्का ( Sirisca ) में एक बार फिर बाघों के लुप्त होने का खतरा बताया गया है।
71 बाघ होने के साथ यह देश में सबसे अधिक आय देने वाला रणथंभौर टाइगर रिजर्व है। यहां आसानी से बाघ दिखने के चलते दिनों-दिन यहां पर्यटन गतिविधि तेजी से बढ़ रही है। यही वजह है कि पिछले पांच साल में पर्यटकों की संख्या 2.47 लाख से बढ़कर 4.70 लाख पर पहुंच गई। इनमें एक तिहाई पर्यटक विदेशी है। पर्यटकों के भारी दबाव के चलते यहां 90 से अधिक वाहन चलाए जा रहे हैं। जबकि इसकी इतनी क्षमता नहीं है। वहीं बाघों की संख्या अधिक होने के चलते बाघ क्रिटिकल टाइगर हेबीटाट से निकल कर बफर जोन में आते हैं, लेकिन यह भी छोटा है। ऐसे में बाघ के बाघ और ग्रामीणों से संघर्ष बढ़ रहे हैं। क्रिटिकल टाइगर हेबीटाट में 65 गांव बसे हुए हैं, जबकि इनमें करीब 8 हजार ग्रामीण और 80 हजार पशु रह रहे हैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंंडिया ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए रिपोर्ट में कहा है कि वन विभाग की प्राथमिकता फिलहाल पर्यटन को बढ़ावा देना है, जबकि उसे बाघों के संरक्षण और उनके स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना चाहिए।
फिर से लुप्त न हो जाए
सरिस्का टाइगर रिजर्व में पिछले तीन सालों में फिर से शिकार की गतिविधियां देखने को मिली है। यहां तीन बाघों के शिकार की बात सरकार मान चुकी है। जबकि भालू, चिंकारा, स्याहगोश जैसे वन्य जीव दिखने ही बंद हो गए हैं। यह इस टाइगर रिजर्व के लिए अलर्ट है। रिपोर्ट में बताया गया है कि टाइगर रिजर्व में अभी भी 26 गांव है। शिकार करने के लिए माने जाने वाले समुदाय विशेष के लोग कुछ गांवों में रह रहे हैं। यह वही समुदाय है जिसको 2005-06 में बाघों के लुप्त होने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। बाघों की सुरक्षा दैनिक मजदूरों के भरोसे छोड़ रखी है। इसके साथ ही यहां बाघों के विस्थापन के बाद उनकी संख्या अपेक्षाकृत उतनी नहीं बढ़ी, जितनी प्राकृतिक तौर पर बढऩी चाहिए। ऐसे में यहां बाघ फिर से लुप्त हो जाए, यह कोई बढ़ी बात नहीं है। रिपोर्ट में सरकार को जल्द से जल्द ग्रामीणों के विस्थापन का ठोस प्लान बनाने के साथ वन्य जीव अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ स्थापित करने की सलाह दी है।
वैज्ञानिक सोच का अभाव
रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों टाइगर रिजर्व के प्रबंधन में वैज्ञानिक सोच का अभाव है। ग्रामीणों और वन अधिकारियेां के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं है। ग्रामीणों का मानना है कि रणथंभौर में पर्यटन से होने वाली कमाई का सारा फायदा शहरी लोग उठा रहे हैं। इससे उनके गांवों की अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है। उलटा जानवरों के कारण उनकी फसलों और पालतु पशुओ को काफी नुकसान हो रहा है।
इन एजेन्सियों ने किया संयुक्त सर्वे
केन्द्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ( union ministry of forest and environment ), वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और नेशनल टाइगर कन्जरवेशन ऑथीरिटी ( National Tiger Conservation Authority ) ने संयुक्त तौर पर टाइगर रिजर्व का सर्वे किया। इस सर्वे रिपोर्ट को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जारी किया था।

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