सरिस्का टाइगर रिजर्व में पिछले तीन सालों में फिर से शिकार की गतिविधियां देखने को मिली है। यहां तीन बाघों के शिकार की बात सरकार मान चुकी है। जबकि भालू, चिंकारा, स्याहगोश जैसे वन्य जीव दिखने ही बंद हो गए हैं। यह इस टाइगर रिजर्व के लिए अलर्ट है। रिपोर्ट में बताया गया है कि टाइगर रिजर्व में अभी भी 26 गांव है। शिकार करने के लिए माने जाने वाले समुदाय विशेष के लोग कुछ गांवों में रह रहे हैं। यह वही समुदाय है जिसको 2005-06 में बाघों के लुप्त होने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। बाघों की सुरक्षा दैनिक मजदूरों के भरोसे छोड़ रखी है। इसके साथ ही यहां बाघों के विस्थापन के बाद उनकी संख्या अपेक्षाकृत उतनी नहीं बढ़ी, जितनी प्राकृतिक तौर पर बढऩी चाहिए। ऐसे में यहां बाघ फिर से लुप्त हो जाए, यह कोई बढ़ी बात नहीं है। रिपोर्ट में सरकार को जल्द से जल्द ग्रामीणों के विस्थापन का ठोस प्लान बनाने के साथ वन्य जीव अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ स्थापित करने की सलाह दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों टाइगर रिजर्व के प्रबंधन में वैज्ञानिक सोच का अभाव है। ग्रामीणों और वन अधिकारियेां के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं है। ग्रामीणों का मानना है कि रणथंभौर में पर्यटन से होने वाली कमाई का सारा फायदा शहरी लोग उठा रहे हैं। इससे उनके गांवों की अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है। उलटा जानवरों के कारण उनकी फसलों और पालतु पशुओ को काफी नुकसान हो रहा है।
केन्द्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ( union ministry of forest and environment ), वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और नेशनल टाइगर कन्जरवेशन ऑथीरिटी ( National Tiger Conservation Authority ) ने संयुक्त तौर पर टाइगर रिजर्व का सर्वे किया। इस सर्वे रिपोर्ट को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जारी किया था।