डॉ. सुमिता जैन ने बताया कि अस्पताल में 65 वर्षीय सायरा कंवर और 62 वर्षीय जोहरी लाल के यह ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद दोनों बिलकुल स्वस्थ्य हैं। उन्होंने बताया कि डाइफ्राम पेट व छाती के बीच की एक झिल्ली है जो फेफडे और दिल को पेट की आंतों व जिगर से अलग रखती है। लेकिन इस हर्निया के कारण छाती पेट का कोई भी अंग जैसे स्टमक, बड़ी आंत, छोटी आंत या जिगर इस झिल्ली में छेद होने के कारण छाती में चला जाता है।
उन्होंने बताया कि इससे मरीज को सांस लेने में परेशानी आती है व पेट में दर्द रहता है। यदि इस बीमारी को समय पर नहीं पहचाना जाए तो छाती व पेट के अंग सड़ सकते हैं, यानि गैंगरीन हो सकता है जो जानलेवा होता है। इस तरह की परेशानी के पहले इस बीमारी को पहचानना व इसका सहीं समय पर ऑपरेशन करना जरूरी है। पहले इस तरह की बीमारी के लिए छाती या पेट को काटकर ऑपरेशन किया जाता था, लेकिन अब लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से केवल तीन या चार छेद से इसका सफल ऑपरेशन किया जा सकता है।
ऑपेरशन करने वाली डॉक्टरों की टीम में डॉ. लक्ष्मण अग्रवाल, डॉ. आशुतोष, डॉ. दीक्षा, डॉ. रामबाबू, डॉ. निशांत, डॉ. विवेक आदि शामिल थे।