सेल्समैन के रूप में कॅरियर की शुरुआत17 साल की उम्र में इन्होंने सेल्स के क्षेत्र में कॅरियर बनाने का फैसला किया। ये नाइटक्लब, डीजे और रेडियो स्टेशन पर पियानो भी बजाया करते थे। इस तरह कई काम करने लगे। अमरीका की स्टॉक एक्सजेंस में भी नौकरी की। जब 21 साल के हुए तो लिली टुलिप पेपर कप कंपनी में सेल्समैन के रूप में इन्हें पहली नौकरी मिली। पेपर कप को बेचने के लिए इन्होंने देशभर में कई यात्राएं की। जिस जगह जाते वहां कस्टमर्स को अपनी बातों से सहमत कर लेते। कस्टमर्स भी इनके प्रोडक्ट को खरीदने में रुचि लेने लगे। इस तरह अपनी मेहनत से कुछ ही समय में कंपनी के टॉप सेल्समैन में शामिल हो गए। 1938 में पेपर कप सेलिंग के दौरान इनकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जिन्होंने मल्टीमिक्सर का निर्माण किया था। इस मशीन से इतने प्रभावित हुए की 16 साल तक पेपर कंपनी में काम करने के बाद इन्हें लगा कि कागज के कप में नहीं, बल्कि मशीन में है कॅरियर। अब ये अलग-अलग होटल और रेस्तरां में जाकर मिल्कशेक बनाने वाली मशीन को बेचने का काम करने लगे।[typography_font:14pt;” >इनका जन्म 1902में अमरीका के इलिनोइस राज्य में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए बचपन की शुरुआत ही संघर्ष के साथ हुई। पिता अनुशासन पसंद थे। मां घर संभालने के साथ ही पियानो भी सीखाया करती थी ताकि घर चलाने में कुछ मदद मिल जाए। इस तरह बचपन में इन्होंने भी बहुत अच्छा पियानो बजाना सीख लिया था। दो छोटे भाई-बहिन भी थे। बचपन में ही इनका आत्मविश्वास बहुत गजब था। होनहार होने के साथ ही ये मेहनती भी थे। लिंकॉन स्कूल से इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शुरू की। स्कूल में जब कभी वाद-विवाद की प्रतियोगिता होती तो ये प्रथम आते और लोगों को अपने विचारों से सहमत भी कर लेते। स्कूल के समय में ही परिवार के खर्चों में मदद करने के लिए इन्होंने किराना और दवा की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था। 1916 में जब 14 वर्ष के हुए तो दो दोस्तों के साथ मिलकर म्यूजिक स्टोर खोला, लेकिन कुछ ही समय में इसे बंद कर दिया। अंकल के सोडा फाउंटेन में भी इन्होंने कुछ समय तक काम किया। यहां इन्होंने सेल्समैन का काम सीखा। प्रथम विश्व युद्ध के समय इन्इें एम्बुलेंस का ड्राइवर बनने का मौका मिला। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद ये वापस अपने घर लौटे और स्कूली शिक्षा पूरी की। हालांकि इनके दिमाग में कमाने के ही नए-नए आइडिया चलते रहते थे।रेस्टोरेंट से जुडऩे के बाद कभी पीछे नहीं देखाबतौर सेल्समैन 1954 में ये कैलिफोर्निया के एक रेस्टोरेंट में पहुंचे। यहां के मालिकों ने इनसे कई सारे मिल्क शेक मिक्सर खरीदे। इसी दौरान इनकी नजर मैकडोनाल्ड रेस्तरां पर गई, जिसे दो भाई डिक और मैक मैकडोनाल्ड चलाते थे। यहां कस्टमर्स की भीड़ को देखकर ये हैरान रह गए। इससे पहले इन्होंने किसी रेस्तरां में इतनी भीड़ नहीं देखी थी। मैकडोनाल्ड ब्रदर्स को रेस्तरां के लिए नए एजेंट की जरूरत थी। सेल्समैन के इतने लंबे अनुभव के बाद इनके दिमाग में अब रेस्तरां इंडस्ट्री में पहचान बनाने का आइडिया आया। इस समय ये 52 वर्ष के हो चुके थे। इन्होंने दोनों भाइयों के पास फ्रेंचाइची लेने का प्रस्ताव रखा। हालांकि पहले वे तैयार नहीं हुए लेकिन बाद में इनकी बातों से प्रभावित होकर फ्रेंचाइजी दे दी। इस तरह 1955 में इन्होंने पहला फ्रेंचाइची रेस्तरां खोला। इन्होंने रेस्टोरेंट के स्वाद के साथ ही डेकेरोशन का भी पूरा ध्यान रखा। पहले ही दिन इनकी बहुत अच्छी कमाई हुई। इसके कुछ ही समय बाद डिक और मैक से इक्विटी खरीदने के बाद ये दुनिया के पहले फास्ट फूड रेस्तरां के मालिक बने। ये व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि मैकडोनाल्ड रेस्तरां को नई ऊंचाई देने वाले रे क्रॉक थे। 1958 में मैकडोनाल्ड ने 100 मिलियन हैमबर्गर बेचने का रिकॉर्ड बनाया। बाद में इन्होंने 18 करोड़ में मैकडोनाल्ड को खरीद लिया। केवल 10 सालों में इन्होंने 700 रेस्टोरेंट खोलें। 1964 में मैकडोनाल्ड शेयर मार्केट में उतरा। मैकडोनाल्ड इतना तेजी से आगे बढ़ा कि 1994 तक दुनिया के 79 देशों में 15 हजार मैकडोनाल्ड रेस्तरां खुल गए थे। 1995 में भारत में 95वां रेस्टोरेंट खुला। अब 119 देशों में 31 हजार से भी ज्यादा मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट है। मैकडोनाल्ड आज दुनिया की सबसे बड़ी रेस्तरां चेन है। इनोवेटिव आइडिया पर काम करने वाले क्रॉक 84 वर्ष की आयु में दुनिया से चले गए।